लोकपर्व’ उपशास्त्रीय भक्ति संगीत, श्रीकृष्ण लीला नाट्य मलखम्भ व जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुतियाँ

महाकुंभ नगर ।
रागों में निबद्ध भक्ति संगीत, श्रीकृष्ण के विविध लीलारूपों पर आधारित लीला नाट्य, कबीर भजन, ढोल, ढोलक, टिमकी, मृदंग, बासुरी, झांझ व थापती जैसे जनजातीय वाद्य यंत्रों की थाप  पर मध्य प्रदेश की आदिम जनजातीय कोरकू का गदली नृत्य एवं प्राचीन खेल नृत्य मलखंभ की प्रस्तुतियां ‘लोकपर्व’ की सांस्कतिक संध्या पर उपस्थित श्रद्धालु दर्शको-श्रोताओं को भारतीय लोक संस्कृति के सुन्दर स्वरूप के सम्मोहन से जोड़ती रही।
मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा महाकुम्भ के अवसर पर सेक्टर-7 स्थित मध्यप्रदेश मण्डप में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत इदौर की सुश्री स्मिता मोकाशी के गणेश वंदना ‘हो जी दाता करो सुमिरण गणपति’ से हुई राग वसन्त तिलका में निवद्ध रचना अब न छूटे रे राम रट लागी के गायन ने श्रोताओं को भक्ति रस से मुग्ध कर दिया। मालवी लोक संगीत कबीर भजन मण्डल द्वारा मालवा की पारम्परिक लोक शैली में कबीर भजन जरा धीरे-धीरे गाडी हांको मेरे राम गाडी वाले’ की प्रस्तुत को श्रद्धालुओं द्वारा भरपूर सराहना मिली। दिनेश  कुमार धौलपुरे एवं साथियों द्वारा ‘मलखम्भ’ खेल का प्रदर्शन भी श्रोताओं के आकर्षण का केन्द्र था। लोकपर्व के अन्तर्गत मध्यप्रदेश की प्राचीन जनजाति कोरकू द्वारा प्रस्तुत गदली नृत्य ने भी दर्षकों को भरपूर मनोरंजित किया। ढोल, ढोलक, बांसुरी, टिमकी, मृदंग, झांझ, घुंघरू एवं ताली की थाप पर जनजातीय स्त्री-पुरूषों द्वारा सम्पादित इस नृत्य ने जनजातीय लोक के अद्भुत लोक संस्कारों का दर्शन कराया।
लोक पर्व की संास्कृतिक संध्या का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तुति उज्जैन के शिरीष राजपुरोहित द्वारा श्री कृष्ण चरित के विविध रूपों पर आधारित ‘’लीला नाट्य’ की श्रृंगारिक मनमोहक प्रस्तुति थी। कंस के अत्याचार से मुक्ति, पूतना, बध, माखन चोरी, बाललीला कालिय नाग मर्दन, गोवर्धन पर्वत धारण, राधा-कृष्ण के विविध प्रसंगों आदि के माध्यम से वासुदेव कृष्ण की विविध मनोहारी लीलाओं को मंचित किया गया।

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