किसी कुंडली में शुक्र, बुध या राहु दूसरे, पांचवें, नौवें अथवा बारहवें भाव में हों तो जातक पितॄ ऋण से पीड़ित माना जाता है। यदि नौवें घर में शुक्र, बुध या राहु है तो यह कुंडली पितृ दोष की है। इसके अलावा लाल किताब में दशम भाव में बृहस्पति को श्रापित माना गया है। सातवें भाव में बृहस्पति होने पर आंशिक पितृ दोष होता है। यदि लग्न में राहु बैठा है तो सूर्य कहीं भी हो उसे ग्रहण होगा और यहां भी पितृ दोष होगा। चन्द्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृ दोष होगा।
लाल किताब के अनुसार आपके पूर्वजों या पितरों ने कोई गलत कार्य किया है तो उसका भुगतान आपको भी करना पड़ सकता है। इसका मतलब है कि करे कोई और भरे कोई। उदाहरणार्थ कई ऐसी समस्याएं होती है जिन्हें हम जेनेटिक प्रॉब्लम कहते हैं। इन 10 तरह के ऋणों से छुटकारा पाने का बहुत ही आसान तरीका जानिए। कई बार संकेतों से यह बात समझ में न आए तो लाल किताब के विशेषज्ञ को कुंडली दिखाएं।
1. पूर्वजों का ऋण : आपके पूर्वजों या पितरों के द्वारा किए गए पाप कर्म का फल आपको भुगतना पड़ रहा है जो यह पूर्वजों का ऋण आप पर लगा है। यानी करे कोई और भरे कोई। यदि यह आपकी कुंडली में ऋण है तो खून से जुड़े रिश्तेदारों की कुंडली में भी होगा। इसका लक्षण यह है कि सभी कार्य अटके पड़े रहेंगे और रिश्तों में आपसी प्रेम नहीं रहेगा। राजयोग भी नष्ट हो जाता है।
उपाय : पूरे परिवार को ही इसका उपाय करना होता है। सभी सदस्य बराबरी का धन या अनाज एकत्रित करके मंदिर में दान करें। गुरु का उपाय करें।
2. पितृ ऋण : यदि जातक की कुंडली में शुक्र, बुध या राहु दूसरे, पांचवें, नौवें अथवा बारहवें भाव में है तो यह पितृ ऋण की कुंडली मानी जाएगी। पूर्व में पूर्वजों ने पुजारी बदला होगा या किसी मंदिर अथवा देव स्थान पर तोड़फोड़ की होगी। यह भी हो सकता है कि पीपल का पेड़ काटा होगा। ऐसे में यह ऋण आप पर लगा है।
उपाय: परिवार के सभी सदस्यों से सिक्के के रूप में पैसे इकट्ठा करें और गुरुवार के दिन पूरे पैसे मंदिर में दान कर दें। पीपल के पेड़ को समय समय पर जल अर्पित करते रहें।
3. स्वयं का ऋण : कुंडली में शुक्र, शनि, राहु या केतु पांचवें भाव में स्थित हों, तो जातक स्वयं के ऋण से पीड़ित माना जाता है। इसका कारण यह रहा होगा कि आपके पितरों ने कुल की परंपरा और रीति रिवाजों को मानने से इनकार कर दिया होगा। इसका लक्षण ये है कि यदि आपके घर के नीचे या आसपास भट्टी जल रही है या छत से सूर्य का प्रकाश आने के लिए कई सारे छेद होंगे। आप नास्तिक विचारधारा से जुड़ गए होंगे।
उपाय: सभी सगे संबंधियों के सहयोग से बराबर-बराबर पैसे इकट्ठा करके यज्ञ कराना चाहिए।
4. मातृ ऋण : यदि कुंडली में केतु चौथे भाव में है तो यह मातृ ऋण की कुंडली मानी जाएगी। कारण यह माना जाता है कि आपके पूर्वजों ने किसी मां को उपेक्षित किया होगा या उसे सताया होगा। यह भी माना जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद मां को उससे दूर रखा होगा। इसका संकेत यह है कि आसपास के कुएं में कचरा आप कचरा डाल रहे हैं या नाला बन गई नदी में कचरा फेंक रहे हैं। आप बदबू वाले क्षेत्र में रहते हैं।
उपाय: अपने सभी सगे संबंधियों से बराबर-बराबर मात्रा में चांदी या चावल लेकर किसी नदी में बहाएं।
5. पत्नी ऋण : कुंडली में जब सूर्य, चन्द्र या राहु दूसरे अथवा सातवें भाव में हो, तो जातक स्त्री-ऋण से ग्रसित माना जाता है। इसका कारण यह है कि आपके पूर्वजों या बड़े बुजुर्गों ने किसी लालच के कारण किसी गर्भवती महिला को मारा होगा या सताया होगा। इसका संकेत यह है कि घर में आपने ऐसे जानवर पाल रखें होंगे जो समूह नहीं रहते हों।
उपाय: सभी सगे संबंधियों से बराबर-बराबर मात्रा में पैसे लेकर उससे 100 गायों को ताजा हरा चारा खिलाएं।
6. संबंधी का ऋण : लाल किताब के अनुसार जब बुध और केतु कुंडली के प्रथम अथवा आठवें भाव में हो, तो जातक पर संबंधी का ऋण माना जाता है। इसका कारण यह हो सकता है कि आपके पूर्वजों ने किसी की फसल या घर में आग लगाई हो, किसी को जहर दिया हो अथवा किसी की भैंस को मार डाला हो। इसका संकेत यह है कि घर के बच्चों के जन्मदिन पर, त्योहारों पर या अन्य महत्वपूर्ण पारिवारिक कार्यक्रम पर घर परिवार से दूर रहना और रिश्तेदारों से कभी नहीं मिलना।
उपाय: अपने सभी सगे संबंधियों से बराबर-बराबर मात्रा में पैसे लेकर उससे दूसरों की मदद के लिए किसी डॉक्टर को दें या उससे दवाएं खरीदकर धर्मार्थ संस्थाओं को दें।
7. पुत्री ऋण : कुंडली में चंद्रमा जब तीसरे या छठे भाव में हो, तो जातक को पुत्री ऋण से पीड़ित माना जाता है। इसका कारण यह हो सकता है कि जातक के किसी पूर्वज ने किसी की बहन या बेटी को सताया या मारा होगा। इसका संकेत यह है कि बच्चों को सताया या मारा होगा या बच्चों से लाभ कमाने का कार्य किया होगा।
उपाय: सभी सगे संबंधियों से पीले रंग की कौड़ियां खरीद कर उसे एक जगह इकट्ठी करके जलाकर राख कर दें और उस राख को उसी दिन नदी में बहा दें।
8. जालिमाना ऋण : कुंडली में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल कुंडली के दसवें और ग्यारहवें भाव में हो, तो जातक को जालिमाना ऋण लगता है। इसका कारण यह है कि आपके पूर्वजों या पितरों ने किसी को अपने को धोखा दिया होगा, उसे घर से बाहर निकाल दिया होगा या उसका हक मारा होगा। इसका संकेत यह है कि आपके घर का एक द्वार दक्षिण में खुलता होगा, घर किसी कुएं के ऊपर निर्मित किया होगा या घर की जमीन किसी ऐसे व्यक्ति से ली गई होगी जिसके पुत्र न हो।
उपाय: सभी परिजनों से अनाज या भोजन एकत्रित करके अलग-अलग जगह की 100 मछलियों या मजदूरों को भोजन कराएं।
9. अजन्मा ऋण : यदि कुंडली में सूर्य, शुक्र, मंगल बारहवें भाव में हो, तो जातक इस ऋण से पीड़ित रहता है। इसका कारण यह है कि जातक के पूर्वजों या पितरों ने ससुराल-पक्ष के लोगों को धोखा दिया होगा या किसी रिश्तेदार के परिवार की बर्बादी में सहयोग किया होगा। इसका संकेत यह है कि दरवाजे के नीचे कोई गंदा नाला बह रहा होगा, घर किसी श्मशान के करीब होगा अथवा घर की दक्षिणी दीवार से जुड़ी कोई भट्टी लगी होगी।
उपाय: सभी सगे संबंधियों से एक-एक नारियल लेकर उन्हें एक जगह इकट्ठा करें और उसी दिन नदी में प्रवाहित कर दें।
10. कुदरती ऋण : कुंडली में यदि चन्द्रमा, मंगल छठे भाव में स्थित हों, तो जातक इस ऋण से पीड़ित रहता है। इसका कारण यह है कि आपके पूर्वजों या पितरों ने किसी को लाचार कुत्ते की तरह बर्बाद कर दिया होगा। इसका संकेत यह है कि आप किसी कुत्ते को सता रहे होंगे या किसी कुत्ते को मारा होगा। दूसरे के बेटे या भतीजे से कपटपूर्ण व्यवहार कर रहे होंगे।
उपाय: एक दिन में सभी परिजनों के सहयोग से सौ कुत्तों को मीठा दूध या खीर खिलानी चाहिए या किसी विधवा महिला की सहायता करते रहना चाहिए।