प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) अध्यक्ष व न्यूनतम दो सदस्यों से पूर्ण होती है। अध्यक्ष के न रहने पर दो सदस्य शिकायत की सुनवाई कर सकते हैं। यदि एक सदस्य के शिकायत सुनने पर कंपनी ने अधिकारिता पर आपत्ति न कर मौन रहती है तो सदस्य के आदेश को इस आधार पर चुनौती नहीं दे सकती।
कोर्ट ने कहा कि एक सदस्य की कार्यवाही को अवैध नहीं माना जा सकता। प्रमोटर समय से फ्लैट का कब्जा नहीं सौंपते तो मूल धन मय ब्याज के वसूली के लिए सिविल कोर्ट जाने की दलील नहीं दे सकते। रेरा एक्ट त्वरित राहत दिलाने के लिए गठित किया गया है। ऐसे में इसके गठन का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा। इसलिए बकाये की वसूली राजस्व प्रक्रिया से करने का आदेश उचित है। कोर्ट ने कहा कि बकाया वसूली के अलावा अन्य मामले में रेरा के आदेश के खिलाफ अपील का उपबंध है। याची अपील दाखिल कर सकता है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एम.एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति आर.आर अग्रवाल की खंडपीठ ने मेसर्स प्राविड रियल इस्टेट प्रा.लि व मेसर्स एमआरजेवी कंस्ट्रक्शन कंपनी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची कंपनी ने रेरा अथॉरिटी के 2012 में बुक फ्लैट का करार के तहत 2017 में कब्जा न सौपने पर मूलधन 25 लाख 36 हजार 985 रूपये की वसूली आदेश को चुनौती दी थी। कहा कि आदेश के खिलाफ अपील होगी। किन्तु एक सदस्य ने आदेश दिया है। जिसे अधिकारिता नहीं थी।
कोर्ट ने कहा कि पद खाली रहने के कारण कार्यवाही अवैध नही होगी। कोर्ट ने बकाया वसूली पर कहा कि दो तरीके से वसूली नहीं हो सकती। मूल धन के लिए सिविल कोर्ट व दंड, मुआवजा, ब्याज के लिए राजस्व वसूली की अलग प्रक्रिया नहीं अपनायी जा सकती। धारा 40 के तहत राजस्व वसूली की जा सकती है।