सावन पूर्णिमा 12 अगस्त को रक्षाबंधन है। 11 अगस्त की रात भद्रा समाप्त होगा और 12 अगस्त को सुबह से शाम तक बहना भैया की कलाई पर रेशम की डोर बांधेंगी। आचार्य नवीनचंद्र मिश्र ने बताया कि शुद्ध पूर्णिमा में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना सर्वोत्तम है। महावीर, अन्नपूर्णा, मार्तण्ड, बद्रीकाशी आदि कई पंचागों के अनुसार भद्रा 11 अगस्त की रात 8.25 से 8.51 बजे के बीच समाप्त हो रहा है। समाप्त होते ही शुद्ध पूर्णिमा शुरू हो जाएगा। इस वजह से दूसरे दिन 12 अगस्त की अहले सुबह से ही बहना भैया की कलाई पर रक्षासूत्त बांधेगीं। औदिक पूर्णिमा के अनुसार सुबह से लेकर शाम तक राखी का समय उत्तम समय माना जाएगा। हालांकि एक-दो पंचागों के अनुसार 11 अगस्त को भद्रा बाद रात में रक्षाबंधन का विधान बताया गया है।
भाई का बहन के प्रति प्रेम व सुरक्षा का संकल्प है रक्षाबंधन : आचार्य
आचार्य नवीन चंद्र मिश्र कहते हैं कि धर्मशास्त्र में देवराज इंद्र को युद्ध पर जाने से पहले इंद्राणि ने रक्षाबंधन बांधा था। रक्षाबंधन भाई का बहन के प्रति प्रेम व सुरक्षा का संकल्प है। शुद्ध पूर्णिमा में बहन प्रेम का बंधन कच्चा धागा भाई की कलाई पर बांधती हैं। राखी बांधने के बाद अनामिका ऊंगुली से ललाट पर तिलक लगाकर अंगूठे से ऊंचा करने का विधान है। इसके बाद तिलक पर अक्षत रोपण कर भाई के लंबी आयु की कामना करती है। भाई के जीवन में मिठास बनी रही इसलिए बहन मिठाई खिलाती है। इसके बाद भाई बहन को उपहार भी देते हैं।