प्रयागराज। आज भारतीय लोक कलाओं में बिगड़ते स्वरूप से सम्पूर्ण कलाकार जगत को कुछ करने की आवश्यकता है। भारतीय लोक कलाओं में पेशेवर कलाकारों की घटती संख्या ही चिंता का विषय है। युवा पीढ़ियों में लोक कलाओं के प्रति रूझान विलुप्त हो रहा है।
उक्त विचार पारम्परिक लोक कला के पारंगत लाल बहादुर “रागी“ ने गुरूवार को श्रम जीवी सेवा समिति दुमदुमा, सैदाबाद, प्रयागराज के तत्वाधान एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से पांच दिवसीय लोक कला उत्सव पूरेगोबई बरौत हंडिया प्रयागराज के समापन अवसर पर व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत में युवा पीढ़ियां धन लोभ के कारण लोक कलाओं से दूरियां बना रही हैं। लोक कलाओं को सजाने एवं संवारने का समय आ गया है। भारत देश की अपनी एक अलग मौसमी लोक कलाएं प्रचलित एवं प्रदर्शित क्षेत्रवार हुआ करती थी। लेकिन आज मौसमी लोक कलाओं का मंच विलुप्तता के कगार पर है। पश्चिमी सभ्यता के चकाचैंध में हमारी लोक कलाएं अपने आप को ठगी सी महसूस कर रही है। अस्सी वर्ष के उम्र पार लोक कलाकारों के ऊपर परम्परागत लोक कलाओं को बचाने के लिए आगे आकर नई युवा पीढ़ियों में सीखाने के लिए जी-जान से लगना होगा।
इसी प्रकार कामता प्रसाद, उमा चरण, हृदय लाल, दीना नाथ यादव, संजू, फिरोज, इन्द्रा पटेल, सुमन सरगम, जयलाल प्रजापति, संजय, संतलाल, अमरजीत, श्यामधर बिन्द, विमल चंद्र, राधेश्याम ने अपने प्रदर्शन को रखते हुए परम्परागत लोक कलाओं को बचाने के लिए बल दिया। अंत में संस्थान सचिव लालजी सिंह ने सभी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि लोक कलाओं को बचाने के लिए आज से दृढ़ संकल्पित होना पड़ेगा। हमारी लोक कलाओं का एक महत्व है, जिससे हमारी दिनचर्या एवं प्रकृति की दशा-दिशा निश्चित है। भारतीय लोक कला जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है, हम लोग मिलकर लोक कलाओं को बचाने के लिए कार्य करें।