डॉ0 कुसुम पाण्डेय
करोड़ो की संख्या में मजदूर जो पलायन करके प्रदेशों में वापस लौट रहे हैं। सबके लिए एक साथ व्यवस्था करना तो किसी के लिए भी संभव नहीं है और अगर मजदूर इस तरह से आक्रोश दिखाते हैं तो फिर उनसे सहानुभूति नहीं हो सकती है। यहां तो मजबूरी नहीं बल्कि राजनीति दिखाई पड़ रही है।
किसी ने जानबूझकर यह कोरोना महामारी किसी के ऊपर थोपा नहीं है, यह तो आपदा है जो सबके लिए समान है, यदि राज्य सरकारों ने समझदारी नहीं दिखाई तो इसके लिए पूरा देश तो जिम्मेदार नहीं हो सकता है और लाँक डाउन भी कुछ लोगों के लिए नहीं वरन पूरे देश के सभी लोगों के लिए है। यह एक संवेदनशील मुद्दा है।
किसी को भी परेशानी हो, ऐसा ना तो सरकार चाहती है और ना ही जनता, लेकिन अगर हमारे परिवार में ही अचानक पांच 10 लोग आ जाते हैं, तो हमारे लिए एक घर में व्यवस्था करना मुश्किल हो जाता है, तो कैसे लोगों ने सोच लिया कि करोड़ों मजदूरों के लिए अचानक सारी व्यवस्था सामान्य तरीके से करना संभव हो जाएगी।
कुछ राज्य सरकारें कामगारों के पलायन से उतपन्न होने वाली समस्याओं को गम्भीरता से विचार नहीं किया। सबसे ज्यादा मजदूर यूपी से हैं। यूपी सरकार का काम अच्छा चल रहा है।
लॉक डाउन सरकार का लिया गया सही कदम है पर इसका अनुपालन करना तो जनता का ही काम है, अगर उस समय मजदूरों से कहा जाता कि आप लोग अपने घर चले जाइए तो मजदूरों को लगता कि सरकार उनको भगा रही है। जबकि लॉक डाउन करने का यही मकसद था कि महामारी को रोका जा सके।
अब जबकि लॉक डाउन 3 में लोगों ने पलायन शुरू किया तो वह अपने साथ महामारी भी लेकर आ रहे हैं।
कभी-कभी जल्दबाजी में कुछ ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं,जिनका दूरगामी परिणाम हमेशा सही नहीं होता है जैसे कि जनता का इस तरह भारी भीड़ में पैदल निकल पड़ना,
लेकिन अब इसको तो नहीं सुधारा जा सकता है और अगर कुछ लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।तो यह सर्वथा अनुचित है क्योंकि जनता को भड़काना और जनता का आक्रोशित होना दोनों ही गलत है। आक्रोश से किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता है।
मजदूरों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए कि अगर सरकार निरंतर उनके हित के लिए प्रयासरत है तो वह सरकार का सहयोग करें ना की सरकारी प्रयासों में अवरोध पैदा करें क्योंकि इससे किसी का भी लाभ नहीं होने वाला है,इस समय धैर्य ही हर समस्या का सही इलाज है,कहते हैं कि परिस्थितियां जब विपरीत होती हैं तब व्यक्ति का प्रभाव और पैसा नहीं, स्वभाव और संबंध काम आते हैं,और इस समय आक्रोश और अधीरता का परिचय नहीं देना चाहिए। इस समय तो मजदूरों को एक दूसरे का मनोबल बढ़ाना और साथ निभाना बस यही उपाय है इस समस्या से निपटने का। सरकार तो अपना काम कर ही रही है।