प्रयागराज,भारत- विश्व की आत्मा है, “गंगा”- भारत की आत्मा है और “प्रयागराज” भारत का प्राण है, यदि प्राण नही तो प्रयागराज नही, यदि गंगा खो गयी तो भारत खो जायेगा और यदि भारत खो गया तो पूरा विश्व खो जाएगा,-इसलिए हम भारतवासी को “गंगा” की रक्षा करनी चाहिए,उसकी शुद्धता,विशुद्धता और उसकी अविरल अविरलता पावनता का हमे खयाल रखना चाहिए…..हे! सुधीजन,साधक,शिष्य, सुजान, साधु सुनो ! “भारत” का अर्थ “भा”- प्रकाश, “रत”- लीन अर्थात जो प्रकाश में लीन है, प्रकाश की ओर उन्मुख है, “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात जो ज्योति की ओर उन्मुख है, प्राण-प्रकाश ,आत्म-प्रकाश ,परमात्म-प्रकाश ही सही प्रकाश है अर्थात जो “प्राण-आत्म-परमात्म-परम प्रकाश-परम आनंद” में लीन होने की ओर है या लीन है वस्तुततः वही भारत है,भारत मे है,भारत का नागरिक है, जो भी , जहाँ भी, जिस देश, जिस वेश में “प्राण-प्रकाश-परमात्मा-परम आनंद” की अभीप्सा में है,वह और वही भारत का नागरिक है, इसलिये पूरा विश्व भारत है,पूरे विश्व की आत्मा भारत है, इसी संदर्भ में हमे ऋषियों ने पूरे विश्व को “वसुधेव कुटुम्बकम” कहा अर्थात पूरा विश्व मेरा परिवार है और परिवार की सही परिभाषा है जो “प्रेम” में हो,जो तन मन के पार “प्राण” में गतिशील हो, और जो अति सूक्ष्म “परमात्म तत्त्व”, “आत्म ज्योति” में लीन हो……
ठीक इसी तरह से गंगा यमुना संगम के तट पर बसा “प्रयागराज” है,जहां का कण-कण चैतन्य है, कण कण पावन है, जहां पहुँच कर हम भी उस पावनता का अहसास कर सकते है,करते हैं पर यह तभी संभव है जब हम चाहें,जब हममें प्यास हो,जब हममें उस पावनता को आत्मसात करने की भावना हो और जब हमारे जीवन मे ऐसा कोई प्राणवान, आत्म साक्षत्कार से पूर्ण, परमात्ममय, जीवंत, चैतन्य जाग्रत “सद्गुरु” हो तभी हमारा प्रवेश “प्राण”- प्रयागराज में संभव होगा……
प्रयागराज का भी सूक्ष्म अर्थ है- “प्र”- प्राण और “याग”- यज्ञ अर्थात जो “सद्गुरु” के माध्यम से अपने “प्राण-अग्नि” को प्रज्ज्वलित कर, अपने समस्त विकृतियों को उसमे भष्मीभूत कर “दिव्य-पावन-प्राण-प्रकाश” में प्रतिष्ठित हो जाता है, वही “प्रयागराज” में प्रवेश कर जाता है, ऐसा साधक शिष्य ही सुजान बन अपने तन-मन को जीते हुए, “प्राण-प्रकाश-आनंद” में गोता मार लेता है,आओ आ जाओ ! जीवन की संपूर्णता तन-मन से पार “प्राण-प्रकाश-प्रयागराज” में प्रवेश कर जाओ, अपने स्व साम्रज्य में स्थापित हो जाओ ! जहाँ जीवन का आनंद है और जहाँ जीवन की पूर्णता है……
ब्रह्म स्वरूप पूज्य गुरुदेव स्वामी कमलेश्वरानंद जी।