मेरा सुख तुमको मिल जाए
और तुम्हारी पीड़ा मुझको
कंकरीला पथ मुझे मुबारक
फूलों भरी डगर हो तुझको
हर उदास मौसम मेरा हो
तुम्हें बसंती पवन झुलाए
मेरे सुख की नींद सलोनी
तेरी पलकों में आ जाए
मेरी उम्र तुम्हारी बन कर
दे दे प्रतिपल यौवन तुझको
मेरा सुख तुमको मिल जाए
और तुम्हारी पीड़ा मुझको
तेरी हर चिंताएं आकर
मेरी झोली में गिर जाएं
और तुम्हारे दामन मे वे
खुशियों की रोली भर जाएं
मेरी सांस तुम्हारी बनकर
सुमधुर गीत सुनाए तुझको
मेरा सुख तुमको मिल जाए
और तुम्हारी पीड़ा मुझको
अंधियारा सब तेरे घर का
मेरी कुटिया में छा जाए
मेरा दीप तुम्हारे आंगन
सुखद रोशनी में नहलाये
तिल – तिल कर भी अपना
यह जीवन अर्पित कर दूं तुझको
मेरा सुख तुमको मिल जाए
और तुम्हारी पीड़ा मुझको
रोम – रोम में नाम तुम्हारा
जिसकी संज्ञा जीवन देती
स्मृतियों की पावन गंगा
कष्ट कलुषता का धो देती
बन पतवार हमारी बांहें
पार करा दें भव से तुझको
मेरा सुख तुमको मिल जाए
और तुम्हारी पीड़ा मुझको
डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय
राष्ट्रीय संयोजक
भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ
सम्पादक साहित्यांजलि प्रभा
गंधियांव करछना प्रयागराज
212301 ( उत्तर प्रदेश)