मान-सम्मान ही भारतीय संस्कृति की पहचान : दुकानजी

जितेंद्र कुमार सिंह
प्रयागराज । सनातन धर्म ही भारतीय संस्कृती का भंडार है हर भारतीय के अन्दर एक अलग ही उर्जा का संचार होता रहता है जब वह सुबह उठकर किसी को प्रणाम,रामराम,जयकृष्णा, जय राम जीकी,हरिओम, हर हर गंगे, जय महाकाल,अभिवादन से पहली मुलाकात करता है उसका सारा दिन मन प्रसन्न रहता है। उसमें एक अलग शक्ती आ जाती है जिसको आप 15 दिन में आजमा सकते हैं।आज से ही आदत डाले दिन भर में जो आपको मिले आप उसे ऐसे ही सम्बोधित करेंगे तो ये भारतीय संस्कृति की पहचान सनातन धर्म की पहचान है।
 दोनों में अंतर आजमा सकते हैं। विश्व की सब भाषा सीखनी चाहिए, मगर अपने भारतीय संस्कार संस्कृती के पहले अभिवादन करने में अपने भगवान का नाम जो अंतकरण से निकलता है तो उसमें वही भगवान दिनभर विराजमान रहते हैं।15/20 वर्षो में ये युग के हमारे सिनियर सिटीजन्स की समाप्ती कि ओर होगी। जिसकी उम्र 75 से 80 की होगी जिनकी दिनचर्या एकदम अलग नजर आती है उनके रहन सहन व्यवहार संस्कार उदारता बड़ों के प्रति छोटों के प्रति व्यवहार था, या है ।हम सब उनसे कुछ सीखकर ग्रहण करें जो हमारे भारतीय समाज संस्कृती की पहचान रखते थे,रखते हैं या रखेंगे उनमें भगवान के प्रति प्रचंड विश्वास आस्था है। हर सुख दुख को सहने वाले सुख-दुख मे साथ देने वाले प्रणाम कहने वालेे आज इस डिजिटल की दुनियां में हम पढ़ लिख गये लेकिन अपने संस्कार को बड़ो के प्रति मान सम्मान को भूलते जा रहे हैं।यह हमारा मानना है। यह जो आज का गुड मार्निंग, गुड नाईट, हाय हलो, फाईन में लिप्त हो रहे हैं, ये वाईन की तरह धीरे धीरे शरीर में प्रवेश करने पर नशा आने लगता है । वही पाश्चात्य पद्ती हमारे आपके बच्चों में स्लो प्वाइजन की तरह हावी हो रही है और हम अपनी संस्कृती संस्कार के प्रती विमुख होते जा रहे हैं। आज से संकल्प लें अपने को बदलेंगे अपने बच्चो को हाय, हलो, गुड बाय के जगह राम राम, जय श्री कृष्ण,हरि ओम, प्रणाम जैसे दिये गये संस्कार से ही सम्बोधित करेगें और अपने धर्म के प्रती आस्था विश्वास उस रास्ते पर ही चलेंगे। अपने लिये नही तो बच्चों के लिये l

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