डॉ कुसुम पाण्डेय
हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि उस विराट सांस्कृतिक चेतना का नाम है, जिसमें बहुत सी जातियां, वर्ग, समुदाय संस्कार, पंथ, धर्म और यहां तक कि पूरा जीवन दर्शन ही बहुविध रूपों से समाहित है। हिंदी किसी एक की भाषा नहीं है, वरण हिंदी तो वह है जो सारी भाषाओं को अपने में समा लेती हो और सभी के साथ गले मिल लेती है।
हिंदी की सरलता और सहजता के साथ ही हमें आगे बढ़ना है और इसी पर स्वरचित कविता भेज रही हूं–
हि॑दी की है बात निराली
हम सब की लाडली हिंदी
सऺस्कृत की बेटी हिऺदी
स्वर और व्यऺजन से अलऺकृत हिंदी,
व्याकरण से सुशोभित हिंदी
मिश्री सी मुह में घुल जाती हिंदी
कबीर, तुलसी, सूर की हिंदी
भारतेंदु, निराला, जयशकर, दिनकर की हिंदी
विवेकानंद की हिंदी शिकागो में मान बढ़ाती हिंदी
हम सब की प्यारी हिंदी
सब भाषाओं से न्यारी हिंदी
निज भाषा का मान रहे
मन में सदैव यह ध्यान रहे
माँ बोलना हिंदी ने सिखलाया
अपनापन भी हिंदी ने आया
सब भाषाओं को गले लगाया
जनमानस की भाषा बनकर
विजयी विश्व तिरंगा फहराया
आओ मिलकर निज भाषा का मान बढ़ाये
अपनी प्यारी हिंदी को
उसका पूरा सम्मान दिलायें।