महादेवी की गद्य रचनाएं उनकी पद्यात्मक रचनाओं की पूरक: प्रो योगेन्द्र

प्रयागराज। महादेवी वर्मा की गद्य रचनाएं उनकी पद्यात्मक रचनाओं की पूरक हैं। उनके द्वारा सम्पादित ‘चाँद’ को समाहित करते हुए उनके समग्र मूल्यांकन की आवश्यकता है।
यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रो.योगेन्द्र प्रताप सिंह ने हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ.प्र प्रयागराज एवं प्रयाग महिला विद्यापीठ डिग्री कालेज के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को महादेवी वर्मा पर केन्द्रित ‘छायावाद और महादेवी वर्मा’ विषयक संगोष्ठी में कहा। उन्होंने कहा कि समकालीन आलोचना काव्य केन्द्रित होने के कारण महादेवी के साथ न्याय नहीं कर सकी। छायावाद की लघुत्रयी में भले ही महादेवी की गणना होती है, लेकिन उनका समग्र मूल्यांकन किया जाय तो वे समस्त छायावादी रचनाकारों में विशिष्ट हैं।

प्रयाग महिला विद्यापीठ डिग्री कालेज, प्रयागराज के महादेवी सभागार में आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए एकेडेमी के अध्यक्ष डाॅ.उदय प्रताप सिंह ने कहा कि महादेवी की कर्मभूमि में रह कर यदि महिला सशक्तिकरण को ना समझे तो व्यर्थ है। यह शहर छायावाद का प्रकाश स्तम्भ है। छायावाद के चार स्तम्भ पंत, निराला, महादेवी और प्रसाद में से तीन यहीं पर हुए। महादेवी, प्रसाद, पंत और निराला की जो भाषा है वह हिन्दी साहित्य की एक अपूर्व निधि थी। महादेवी पूरी सनातन परंपरा का लेकर अपनी कविताओं में ढाल देती है। बौद्धिक क्षमता वाली यदि कोई कवियत्री है तो वह महादेवी हैं।

संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता डाॅ.अनूप कुमार ने कहा कि महादेवी की कविताओं से एक ओर प्रेरणा तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध होता है। हिन्दी गद्य साहित्य में संस्मरण एवं रेखाचित्र को बुलंदियों तक पहुंचाने का श्रेय महादेवी को है। उनके संस्मरणों और रेखाचित्रों में शोषित, पीड़ित लोगों के प्रति ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों के लिये भी आत्मीयता एवं करुणा प्रकट होती है। डाॅ. अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि छायावाद और महादेवी की रचनाओं का कैनवास बहुत व्यापक है। छायावाद के बीच निराला व पंत ने अपने विचार बदले किन्तु महादेवी जीवन पर्यन्त छायावाद में रहीं। प्रो.रमेश चन्द्र शुक्ला ने कहा कि छायावाद की आज तक कोई सम्यक परिभाषा नहीं दी जा सकी है। छायावादी साहित्य को पलायनवादी साहित्य कहा गया है।

डाॅ.सृष्टि कुशवाहा ने कहा कि पूरा का पूरा छायावाद अध्यात्म की अद्भुत छाया है। छायावादी कवियों की रचनाओं की आध्यात्मिक चेतना की जलधारा में समूचे हिन्दी साहित्य ने स्नान कर लिया और बात जब महोदेवी की हो तो कहना ही क्या। उनकी वाणी तो जीवन की अपार्थिव वेदना की गंगोत्री से निकली वेदना है जो अनकों भावनाओं और संवेदनाओं को अपने अंक समेटे हुए तीव्र गति से प्रवाहित होती है। संगेाष्ठी का संयोजन एवं संचालन प्रयाग महिला विद्यापीठ डिग्री कालेज की कार्यवाहक प्राचार्या डाॅ.जूही शुक्ला ने किया। इस अवसर पर डाॅ.विनम्रसेन सिंह, डाॅ.सपना चैधरी, डाॅ.ज्योति, शाम्भवी, रवि, डाॅ.रमेश सिंह, डाॅ सरोज सिंह सहित कई लोग उपस्थित रहे।

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