प्रयागराज। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिन्मय मिशन के प्रकाण्ड वेदान्ती एवं आध्यात्मिक गुरु अद्वैतानन्द के आगमन पर शनिवार को महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर के राधाकृष्णन सभागार में सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण कार्यशाला सम्पन्न हुई जिसमें विद्यालय की सचिव महोदया प्रो० कृष्णा गुप्ता जी प्रबन्ध समिति के सम्मानित सदस्य, चिन्मय मिशन प्रयाग के सचिव धीरेन , ब्रहृमचारिणी शाश्वती चैतन्य जी महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर की चारों शाखाओं के प्रधानाचार्यगण एवं समस्त शिक्षक वृन्द सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग की वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती दीपारानी गुप्ता द्वारा किया गया। महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर की प्रधानाचार्या श्रीमती अल्पना डे ने स्वामी जी एवं समस्त आगन्तुकों का स्वागत किया, तत्पश्चात भारतीय संस्कृति से अनुप्राणित दीप प्रज्वलन के साथ कार्यशाला का शुभारम्भ पतंजलि ऋषिकुलम् की शिक्षिकाओं द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक सुर लहरियों से हुआ जिसने सभागार में उपस्थित सभी को आध्यात्मिकता की भावना से ओत-प्रोत कर दिया।
इस अवसर पर स्वामी जी ने अपने मधुर वाचन कौशल से सभी को मन्त्रमुग्ध किया। गुरु-शिष्य सम्बन्ध पर अपने सुविचारों को अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है। गुरु और शिष्य के सम्बन्ध का आधार है गुरु का ज्ञान, मौलिकता, शिष्य के प्रति स्नेह भाव तथा ज्ञान बाँटने की निस्वार्थ भावना गुरु के ज्ञान के बिना शिष्य पशुवत् है जीवन में महान बनने के लिए ईश्वर, गुरू एवं वेदान्त की परम् आवश्यकता है। शिष्य के गुणों को बताते हुए उन्होंने कहा कि एक अच्छे शिष्य में अहंकार की शिथिलता, अनुशासन, जिज्ञासा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए एकाग्रता होनी चाहिये। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि गुरू पढ़ाने के साथ-साथ छात्रों को अपनी संस्कृति से परिचित कराये। शिक्षक का आचरण आदर्शमय होना चाहिए. स्कूल का वातावरण सकारात्मक एवं प्रेममय होना चाहिए तभी गुरु और शिष्य का सम्बन्ध आदर्शमय होगा। स्वामी जी ने नचिकेता, कृष्ण-अर्जुन तथा विवेकानन्द के दृष्टातों के माध्यम से गुरु और शिष्य के सम्बन्ध को स्पष्ट किया।
महर्षि पतंजलि गंगागुरूकुलम् की प्रधानाचार्या श्रीमती माधुरी श्रीवास्तव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ।