मनुष्य का ह्रदय ही संसार रूपी सागर : आचार्य बाल शुक देवब्रत

अनिल कुमार त्रिपाठी

कौशांबी ! विकास खंड कौशाम्बी के मोहोद्दीनपुर गांव में चल रहे श्री मद भागवत कथा के अंतिम दिन में ब्यास आचार्य बाल शुक देवब्रत महाराज ने भगवान के 24 अवतार व समुद्र मंथन की कथा सुनाई कथा सुनाते हुए कहा कि मनुष्य का ह्रदय ही संसार रूपी सागर है मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है उन्होंने कहा कि कभी मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों का तो कभी बुरे विचारों का मंथन चलता रहता है। तो अच्छे विचारों को अपनाकर समाज के हित में कार्य करना चाहिए कथा में समुद्र मंथन की कथा बहुत ही रोचक एवं सार गर्भित सुनाते हुए कहा कि संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं जब जब कोइअपने गलत कृत्यों सेइस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है । तब तब भगवान किसी न किसी रूप मेअवतरित हो दुर्जनों का विनाश करते हैं इस मौके पर यजमान शुशीला देवी व आयुर्वेदाचार्य रामविधि त्रिपाठी,गुड्डू शुक्ल,कुलदीप शुक्ल,अरविंद कुमार,विद्यानंद त्रिपाठी,विनीत,छोटू आदि क्षेत्रीय लोग मौजूद थे।

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