मकर संक्रांति पर दान पुण्य का महत्व

आचार्य श्रीकांत शास्त्री

प्रयागराज ! मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है , इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

आमतौर पर 14 जनवरी को पड़ने वाली मकर संक्रांति एक बार फिर 15 जनवरी को पड़ रही है। ज्योंतिषियों के मुताबिक, इस बार कई कारणों से मकर संक्रांति खास है। यह तिथि पुण्य स्नान और दान के लिए विशेष मानी गई है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।

सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन सिख समाज लोहणी तथा केरला समाज ओणम धूमधाम से मनाएगा। मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है, जिसे देश के हर कोने में मनाया जाता है। कहीं पर लोहड़ी तो कहीं इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को दान पर्व के रूप में जानते हैं। इस दिन दान के साथ ही इलाहाबाद, गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर माघ मेला लगता है। यहां स्नान करने का अपना अलग ही महत्त्व है। प्रयागराज में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। 14  दिसम्बर से 14  जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है।

देवताओं के दिन की शुरुआत संक्रांति से माना जाता है। इसलिए यह दिन शुभ कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

बसंत ऋतु की होगी शुरुआतः पौष माह में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।

इसके साथ ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। इस दिन को सूर्य की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन के बाद से ही दिन में तिल-तिल बढ़ता है।

“आचार्य श्रीकान्तT.शास्त्री”
स्वतंत्र पत्रकार ,मान्यता प्राप्त

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