डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
भारत भाग्य विधाता बनकर
सबको तू अपनाता चल
कठिन परिश्रम के बलपर तू
अपनी राह बनाता चल
श्रम के बिंदु बनाकर मोती
जन-जन को अर्पित कर दे
दीन दुखी निबलों विकलों की
खाली झोली फिर भर दे
पौरुष का पाथेय प्राण मय
ध्वज आगे लहराता चल
भारत भाग्य विधाता बनकर
सबको तू अपनाता चल
चंवर डुलाता है पीपल नित
लोरी नीम सुनाती है
जामुन की छाया जादू के
किस्से रोज बताती है
अमराई की महक संजोकर
जी भर उसे लुटाता चल
भारत भाग्य विधाता बनकर
सबको तू अपनाता चल
इस वसुधा के सारे प्राणी
अपने परिवार सरीखे हैं
तुझको तो सब घट घट में
बस ईश्वर ही दीखे हैं
प्रेम पंथ की रचना करके
उस पर तू मुस्काता चल
भारत भाग्य विधाता बनकर
सबको तू अपनाता चल
निवास _
गंधियांव, करछना, प्रयागराज
21230 ( उत्तर प्रदेश )
व्हाट्सएप नंबर 82 99 280 381