भागवत कथा सहश्र पुण्यों का देती है फल- डा. श्यामसुंदर पाराशर शास्त्री जी

प्रतापगढ़। बाबागंज क्षेत्र के फतेशाहपुर गांव मे तीर्थराज शुक्ल द्वारा आयोजित भागवत कथा के द्वितीय दिवस वृंदावन से पधारे भागवत मर्मज्ञ डा. श्यामसंुदर पाराशर शास्त्री जी ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि यह श्रीमदभागवत व्यक्ति के जीवन से काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारो को दूर कर भगवत चरणाबिंद को प्राप्त कराती है। इसलिए जीवनमुक्त परमहंस महात्मा भागवत कथा का आश्रय ग्रहण करते है। कथाव्यास ने यह भी कहा कि कथा श्रवण के अधिकारी वह है जो हृदय से भावुक हो और रसिक हो, क्योंकि जब तक बहुत प्यास न लगी हो तब तक पानी का मूल्य समझ मे नही आता है। सत्रह पुराणों की रचना करने के बाद भी व्यास जी को शांति नही मिली। नारद जी के कहने पर उन्होनें श्रीमदभागवत की रचना कर आत्म संतुष्टि प्राप्त कर संसार के कलुषित प्राणियों का कल्याण कर महनीय कार्य किया। भागवत कथा का शुभारंभ भक्त चरित्र से प्रारंभ होता है। हमारे देश की माताओ, भक्त व भगवान जन्म दिया पर उत्तरा ने भक्त परीक्षित एवं भगवान को अपने गर्भ मे धारण किया। कुंती मां ने भगवान द्वारिकाधीश से विपत्ति का वरदान इसलिए मांगा कि विपत्ति मे ही परमात्मा की याद आती है और भगवान भी पुकार सुनकर दौडे चले आते है। परीक्षित को संत को पहचानने मे भूल हुई तो संत को श्राप लगा एवं प्रतापभानु ने नकली संत को असली मान लिया तो उनको राक्षस बनना पड़ा। इसलिये संत को पहचानने मे भूल नही होना चाहिये। इस मौके पर राधारमण मिश्र, आत्मा देवी, उर्मिला देवी, अमर तिवारी, चंद्रभूषण, अनिल कुमार, रामपाल मिश्र, भोलानाथ, जयसिंह, धीरेन्द्र सिंह, बब्लू मिश्र, विपिन मिश्र, रमाशंकर तिवारी, जीतलाल, मंगला प्रसाद, शिवप्रसाद, प्रेमनारायण, रामराज पाण्डेय, फूलचंद्र, अनंताचार्य मिश्र आदि रहे। 

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