प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की प्रथम प्रशासिका मातेश्वरी जगदंबा जी का पुण्यतिथि दिवस 24 जून को ब्रह्मा कुमारीज के स्थानीय मुख्य सेवा केंद्र बसवार रोड, धनुआ में विधिवत तरीके से मनाया गया।
इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य जनों ने मातेश्वरी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उनके बताए हुए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा की। ब्रह्माकुमारीज की क्षेत्रीय निर्देशिका मनोरमा दीदी ने संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू से ऑनलाइन जुड़कर क्लास कराई। इस अवसर पर उन्होंने बताया की, मातेश्वरी जगदंबा का बचपन का नाम राधा था तथा ब्रह्माकुमारीज में शुरुआत में उन्हें ओम राधे के नाम से जाना जाता था। वह मात्र 14 वर्ष की अल्प आयु में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के संपर्क में आई तथा बाबा ने उनकी योग्यता को देखकर उन्हें ब्रह्माकुमारीज की समर्पित बहनों में सबसे आगे रखा तथा आगे चलकर वह ब्रह्माकुमारीज संस्थान की प्रथम प्रशासिका बनीं । उन्हें सब प्यार से मम्मा कहते थे।मम्मा त्याग, तपस्या,सेवा साधना एवं शक्ति की साक्षात मूर्ति थी। मम्मा को सर्वशक्तिमान पिता परमात्मा शिव बाबा एवं उनके साकार माध्यम ब्रह्मा बाबा पर संपूर्ण निश्चय था। मम्मा ने ईश्वरीय शिक्षाओं को अपने जीवन में अक्षरसः धारण किया एवं एक सर्वोत्कृष्ट विद्यार्थी की भूमिका को यथोचित निभाया। मम्मा का कहना था कि इस संसार में हम अपने कर्मों की खेती खुद करते हैं एवं उसके फल का उपभोग भी हम स्वयं ही करते हैं, हमारे कर्म हमारी जगह कोई और नहीं कर सकता है ना हम किसी और के कर्मों का फल प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हमें श्रेष्ठ कर्मों की खेती ही करनी चाहिए। मां ने समय पर बहुत ध्यान दिया तथा कभी भी व्यर्थ चिंतन और नकारात्मक चिंतन में अपना थोड़ा भी समय नष्ट नहीं किया।
1937 से 1964 तक वह ब्रह्मकुमारीज के कार्य को संभालती रही तथा 1964 में 43 वर्ष की आयु में कैंसर के कारण उन्होंने पुराने शरीर का त्याग किया। इस छोटे से जीवन काल में मम्मा ने ब्रह्माकुमारीज़ की नींव को ऐसा मजबूत किया जो उनके जाने के बाद आज तक ब्रह्मा कुमारीज संस्थान विस्तार को प्राप्त कर रहा है तथा विश्व के लगभग सभी देशों में आदि सनातन देवी देवता धर्म को पुनर्जीवित कर रहा है ।और भारत के प्राचीन राजयोग तथा गीता ज्ञान को जनमानस तक पहुंचा रहा है