सुप्रीम कोर्ट में बड़ी पीठ का बहुमत वाला फैसला अब कम संख्या वाली पीठ के सर्वसम्मत फैसले से ऊपर माना जाएगा। चाहे बहुमत वाले जजों की संख्या कितनी भी हो। शीर्ष अदालत ने सोमवार को यह व्यवस्था दी है।
शीर्ष अदालत के फैसले का मतलब है कि सात सदस्यीय पीठ के 4-3 के बहुमत से पारित आदेश को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सर्वसम्मत फैसले के ऊपर तरजीह दी जाएगी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा है, संविधान के अनुच्छेद-145(5) के मद्देनजर बहुमत वाले जजों की सहमति को अदालत का निर्णय माना जाएगा। जस्टिस बनर्जी ने अपनी और जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सुधांशु धूलिया की ओर से फैसला लिखा। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने अलग और सहमति वाले फैसले में यह भी कहा कि बड़ी संख्या वाली पीठ की ओर से दिया गया निर्णय कम या समान जजों की किसी भी पीठ पर बाध्यकारी है।
शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ ने दी व्यवस्था
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यहां पीठ की ताकत प्रासंगिक है न कि उन जजों की संख्या जिन्होंने एक विशेष दृष्टिकोण लिया है। कम सदस्यीय पीठ, बड़ी पीठ द्वारा लिए गए कानून के दृष्टिकोण से असहमत नहीं हो सकती है।
यह था मामला
2017 में जस्टिस आरएफ नरीमन (सेवानिवृत्त) और जस्टिस संजय किशन कौल की दो न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
अदालत ने तब सवाल किया था
क्या सर्वसम्मति से पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को सात-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा खारिज किया जा सकता है, जिसमें चार न्यायाधीश बहुमत वाले पक्ष में हो और तीन अल्पमत में हों।