आर.के. सिन्हा
अगर किसी शख्स या परिवार की माली हालत बहुत ठोस नहीं है, तो इसका यह मतलब तो कतई नहीं है कि उसका अपनी छत का सपना नहीं होता। हरेक इंसान की चाहत होती है कि उसे अपनी जिंदगी रहते ही अपने घर में रहने का सुख मिल जाए। इस सोच को साकार करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2022-23 के केन्द्रीय बजट में 48 हजार करोड़ रुपए का एक भारी भरकम प्रस्ताव रखा है। इस रकम से देश में 80 लाख घर बनाने का संकल्प लिया गया है। यह वास्तव में बहुत सकारात्मक और गरीब कल्याणकारी फैसला है। इस कदम से सरकार की मंशा भी जाहिर हो जाती है कि वह उन लोगों के बारे में गंभीरता से विचार करती हैं जिनकी आय सीमित है और जो अपना कमान बनाने में सक्षम नहीं हैं । उम्मीद की जानी चाहिए कि चालू वित्तीय साल के दौरान 80 लाख घर बनने से कम से कम तीन–चार करोड़ लोग अपने घरों में शिफ्ट भी कर लेंगे। एक परिवार में पांच-छह सदस्य तो होते ही हैं। किराए के घऱ से अपने घर में शिफ्ट करने का सुख उससे पूछिए जो कभी किराए के घर में रहा हो और उसने अपने मकान मालिक के लगातार ताने भी सुने हों।
दरअसल बजट में 48 हजार करोड़ रुपए की राशि प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए रखी गई है। इसके तहत ही 80 लाख किफायती घर बनाए जाएंगे। गरीबों को मकान देने की योजना के तहत सरकार ने आवास योजना को विस्तार देने का फैसला किया है। सरकार ने किफायती आवास योजना के लिए राज्य सरकारों के साथ काम करने का फैसला किया है, ताकि इस योजना के लिए भूमि अधिग्रहण और निर्माण संबंधी मंजूरी मिलने के लिए लगने वाले समय को कम किया जा सके। मध्यस्थता लागत में कमी लाने और आसानी से पूंजी जुटाने के लिए सरकार ने वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के साथ काम करने का फैसला किया है।
देखिए हमारे यहां सरकारें तो धन की व्यवस्था कर देती हैं किसी बड़ी परियोजना के लिए। पर देखने में आता है कि उस धन का एक बड़ा हिस्सा कुछ भ्रष्ट लोग चट कर जाते हैं। इसलिए योजना का लाभ उस व्यक्ति को कई बार नहीं मिल पाता जिसे मिलना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। केन्द्र और राज्य सरकारों के संबंधित विभागों को सुनिशिचत करना होगा कि 48 हजार करोड़ रुपए से स्तरीय घरों का निर्माण हो जाए। जाहिर है, इतने अधिक घरों के निर्माण के लिए भूमि की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए जरूरी है कि घरों का निर्माण करने के लिए जमीनें वहां पर अधिग्रहीत की जाएं जो किसी शहर से बहुत दूर नहीं हैं जहाँ गरीबों के रोजगार के साधन हैं । फिर वहां पर घरों का निर्माण करने के दौरान ही सुगम सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था भी करनी होगी जिससे कि जो लोग घर खरीदें उन्हें अपने दफ्तर, फैक्ट्री या दुकान तक आने-जाने में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो। इसके अलावा,वहां पर स्कूल,अस्पताल, बाजार आदि की भी बढ़िया व्यवस्था करनी होगी। जिन घरों का निर्माण ग्रामीण इलाकों में होना है, वहां पर भी स्तरीय घर बनने चाहिए।
दरअसल किसी परियोजना पर काम करते वक्त इन सभी पहलुओं को बारीकी से देखना होगा। कोई भी काम गंभीरता से किया जाना चाहिए। तब ही उसका उचित लाभ होगा। हां, यह तो सरकार को देखना होगा कि जो बिल्डर सस्ते घर बनाने के लिए आगे आएं उन्हें टैक्स में भरपूर छूट मिले। केरल, हिमाचल प्रदेश और गोवा में ईको फ्रेंडली घरों का खूब निर्माण हो रहा है। ये सामान्य घरों की तुलना में तकरीबन आधी कीमत पर ही बन जाते हैं। इन घरों को मॉडल के तौर पर पेश किया जा सकता है। इसलिए उन आर्किटेक्ट की भी तलाश की जाए जो सस्ते और सुंदर घर बनाने के डिजाइन बनाने में अपने को सिद्ध कर चुके हैं। बहुत से आर्किटेक्ट कहते हैं कि इको फ्रेंडली मैटेरियल इस्तेमाल करने से घर सस्ते बन सकते हैं और उनमें मेंटेनेंस की जरूरत भी कम पड़ेगी। उपर्युक्त सभी राज्यों में इको-फ्रेंडली होम मैटेरियल से खूब घर बन रहे हैं। तो हमारे यहां पूरे देशभर में सस्ते इको फ्रेंडली घरों को बनाने के बारे में सोचना होगा। गोल्फ कोर्स फेसिंग या रीवर फेसिंग घरों के मोह को त्याग कर सस्ते सुंदर घरों को बनाने के बारे में सोचना होगा। हमारे यहां आर्किटेक्ट बिरादरी को भी रचनात्मक रवैया अपनाना होगा जिससे कि हम परंपरागत घरों के निर्माण से आगे के बारे में भी सोचें। भारत में सैकड़ों आर्किटेक्चर की डिग्री देने वाले कॉलेज खुल चुके हैं। इनसे हर साल हजारों नए आर्किटेक्ट हर साल पास आउट करते हैं। पर क्या कोई कॉलेज इको-फ्रेंडली घर बनाने की भी पढ़ाई करवा रहा है? लगता तो नहीं है। अगर इस बार प्रस्तावित 80 लाख घरों का निर्माण नई तकनीक से हो जाए तो ये देश के लिए एक नजीर बन जाएगी। समझ नहीं आता कि हमारे सारे समाज में तड़क- भड़क वाले घर बनाने की होड़ क्यों मची हुई है। बड़े घर तो बन रहे हैं पर उनमें कुछ किताबों के लिए स्पेस तक नहीं होता।
बहरहाल, सरकार को आगामी सालों में भी सस्ते घरों के निर्माण पर अपना फोकस बनाए रखना ही होगा। देखिए देश में करोड़पतियों और मोटा कमाने वालों की तादाद बढ़ती ही चली जा रही है। ये सिलसिला आगे भी जारी ही रहने वाला है। समाज का यह तबका तो कहीं भी अपने मन का घर ले सकता है। उसके पास पैसा जो है। लेकिन, सरकारों को उन का भी ख्याल रखना होगा जिनकी कमाई सीमित है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोनाकाल के कारण अधितकर लोगों की आय कम हुई है। इसलिए इस वर्ग पर सरकार को तो विशेष ध्यान देना ही होगा। इस बीच, सरकार को अपने स्मार्ट सिटीज के प्रोजेक्ट को लेकर भी नए उत्साह और उर्जा के साथ जनता के सामने आना होगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)