पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू पुजारियों को भत्ता देने की तृणमूल सरकार की योजना, तुष्टिकरण के आरोपों की काट और भारतीय जनता पार्टी को मात देने की सोची समझी रणनीति प्रतीत होती है। राजनीति पर निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ‘हिंदू विरोधी’ छवि को त्याग कर ‘नरम हिंदुत्व’ को अपनाना चाहती है और इसके लिए वह सावधानीपूर्वक कदम उठा रही है। पार्टी ने प्रशांत किशोर और उनकी टीम को अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कराने और दुर्गा पूजा समितियों को आर्थिक सहायता देने जैसे निर्णय भी लिए हैं। हालांकि, ममता बनर्जी नीत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि “समावेशी” राजनीति के तहत आठ हजार सनातन ब्राह्मण पुजारियों को आर्थिक सहायता और मुफ्त आवास उपलब्ध कराया गया है, वहीं, विपक्षी दल भाजपा ने इसे उसके हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास करार दिया है। तृणमूल के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय ने कहा, “हम सांप्रदायिक राजनीति में विश्वास नहीं रखते, जैसा कि भाजपा करती है। हमारा लक्ष्य पीड़ित व्यक्तियों और समुदायों की सहायता करना है। पार्टी का कोई धार्मिक एजेंडा नहीं है।” हालांकि, रॉय यह समझाने में असफल रहे कि हिंदू पुजारियों को वित्तीय सहायता देने में आठ साल का समय क्यों लगा, जबकि इमाम और मुअज्जिनों को इस प्रकार की सहायता का लाभ पिछले आठ साल से मिल रहा है। नाम उजागर न करने की शर्त पर तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “भाजपा हमें हिन्दू विरोधी कह कर प्रचारित करती रही है। उनके सदस्य खुद को हिंदुत्व के सबसे बड़े ठेकेदार बताते हैं। इसलिए हमने समावेशी विकास के संदेश के साथ जनता के बीच, विशेषकर हिंदू समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाने का निर्णय लिया।” उन्होंने कहा, “हिंदू विरोधी होने के आरोपों से हमें 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुत नुकसान हुआ था। हम इसे बदलना चाहते हैं लेकिन इसके साथ ही हम अल्पसंख्यकों को किनारे नहीं कर सकते। हमें इस खाई को भरना होगा और 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले जनता के बीच अपनी खोई हुई जमीन वापस लेनी होगी।” तृणमूल के सूत्रों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तरी और दक्षिणी बंगाल के कई हिस्सों में पार्टी की हार “आंखें खोलने वाली” थी। पिछले साल राजनीतिक पंडितों के आकलन को धता बताते हुए पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी और 41 प्रतिशत मत हासिल किया था। लोकसभा में तृणमूल की सीटें 2014 में 34 थीं जिनकी संख्या 2019 में घटकर 22 रह गई थी। इसके अलावा पार्टी को जंगलमहल क्षेत्र में करारी हार का सामना करना पड़ा था जहां की आदिवासी जनता ने इस बार तृणमूल की बजाय भाजपा के पक्ष में मतदान किया था।
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