प्रदूषण से बढ़ सकता है इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ का खतरा

श्वसन-तंत्र हमारे शरीर का वह प्रमुख हिस्सा है, जो मुख्यतः नाक, सांस की नली और फेफड़ों से मिलकर बना होता है। यह हमारे शरीर के भीतर शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाने और कॉर्बनडाइऑक्साइड को बाहर निकालने का काम करता है। वायु प्रदूषण से शरीर का यही भाग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। जो कई तरह की समस्याएं के रूप में सामने आता है। जिसमें से एक है आइएलडी…आइए जानते हैं क्या है यह मर्ज।आइएलडी यानी इंटरस्टीशियल लंग्स डिज़ीज़ श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का ऐसा समूह है, जो फेफड़ों में हवा के फिल्टर के लिए बने अति सूक्ष्म छिद्रों के बीच मौजूद खाली जगह को प्रभावित करता है। ऐसी स्थिति में लंग्स की कोशिकाएं सख्त और मोटी हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है और रक्तप्रवाह के जरिए शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता। आइएलडी की श्रेणी में सबसे ज्यादा पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक समस्या देखने को मिलती है। इसके अलावा हाइपर सेंसिटिविटी, सरकाइडोसिस, न्युमोनाइटिस, ऑक्यूपेशनल लंग्स डिज़ीज़ (किसी प्रदूषण भरे माहौल में काम करने वाले लोगों को उनके काम के कारण होने वाली बीमारी) और कनेक्टिव टिश्यू डिज़ीज़ जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

प्रमुख लक्षण

इस श्रेणी की सभी बीमारियों में आमतौर पर शुरुआती दौर में चलते समय सांस लेने में तकलीफ, बेवजह थकान और सूखी खांसी जैसी समस्याएं होती हैं। अगर बिना किसी एक्टिविटी के सांस लेन में तकलीफ हो तो यह गंभीर समस्या का संकेत है।

बचाव

– बाहर निकलते समय पर्याप्त ऊनी कपड़े और मास्क पहनना न भूलें और स्मोकिंग से दूर रहें।

– अपने आसपास दूसरों को सिगरेट पीने से मना करें क्योंकि पैसिव स्मोकिंग की वजह से भी ऐसी समस्या हो सकती है।

जांच एवं उपचार

एक्स-रे, सीटी स्कैन, स्पाइरोमेट्री, सिक्स मिनट वॉक टेस्ट, ब्रॉन्कोस्कोपी और कैंसर की आशंका होने पर लंग्स की बायोप्सी भी की जाती है। शुरुआती दौर में मरीज को एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड, एंटीफिब्रोटिक, इम्युनोस्प्रेसिव ग्रूप की दवाएं दी जाती हैं।

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