हिन्दू धर्म में एकादशी का खास महत्व है। साल में आने वाली सभी एकादशी में पौष महीने में आने वाली पुत्रदा एकादशी की विशेष महत्ता है तो आइए हम आपको पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत-विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें पुत्रदा एकादशी के बारे में
पौष मास की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस साल पुत्रदा एकादशी 6 जनवरी को पड़ रही है। ऐसा माना जाता है कि पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान का सुख प्राप्त होती है। इस व्रत को करने वाले भक्त न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि सभी प्रकार के दुख भी दूर हो जाते हैं।
पुत्रदा एकादशी के दिन कैसे करें पूजा
पौष मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी का खास महत्व है। इसलिए इस दिन विशेष प्रकार से पूजा की जाती है। इसके लिए दशमी के दिन खाना खाने के बाद दातुन से मुंह धोएं जिससे भोजन का अंश मुंह में न रहे। इसके बाद सुबह उठकर पवित्र मन से व्रत करने का संकल्प करें। प्रातः जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। उसके बाद धूप और दीप से कृष्ण जी की पूजा करें और दीपदान भी करें। यही नहीं एकादशी के दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण करें और कीर्तन करें। भगवान से अपने किए गए पापों के लिए क्षमा मांगें। इसके बाद द्वादशी के दिन सभी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें उसी बाद ही खाना खाएं।
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नाम का एक नगर था जिसमें सुकेतु राजा राज्य करते थे। राजा सुकेतु के पास सबकुछ था लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी इससे वह दुखी रहते थे। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। एक दिन राजा और रानी निःसंतान होने के कारण दुखी हुए और अपने मंत्री को अपना राज्य सौंपकर जंगल में तपस्या करने चले गए। तपस्या के दौरान वह इतने दुखे हुए कि उन्होंने आत्महत्या करने की सोची लेकिन तभी उन्हें अपने विचार पर दुख हुआ और उन्होंने यह विचार त्याग दिया। इसी समय उन्हें आकाशवाणी सुनायी दी और वह उसी के अनुसार चलते रहे। इस प्रकार चलते हुए वह साधुओं की एक मंडली में पहुंच गए जहां उन्हें पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करना प्रारम्भ किया जिसके प्रभाव से उन्हें संतान पैदा हुई। इसके बाद पुत्रदा एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया।
इन नियमों का पालन जरूर करें
पौष पुत्रदा एकादशी बहुत खास होती है इसलिए इस व्रत को विशेष प्रकार से रखना चाहिए। एकादशी व्रत को दशमी से ही शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए दशमी के दिन लहसुन–प्याज न खाएं और भोजन भी सात्विक करें। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा कर दीपदान करें। एकादशी के दिन कोशिश करें कि दिन रसाहार करें और शाम को फलाहार ग्रहण करें। इसके बाद एकादशी की रात को कीर्तन करें और द्वादशी को ब्राह्मणों को दान दें। ध्यान रखें कि द्वादशी के दिन भी सदैव सात्विक भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार एकादशी के साथ ही दशमी और द्वादशी को भी कुछ विशेष नियमों का पालन करें।