पेरिस जाने वाली भारतीय हॉकी टीम के साथ अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में जुड़े जुगराज सिंह मौका मिलने पर दमखम दिखाने को तैयार हैं। जुगराज सिंह की संघर्ष की कहानी बेहद अनोखी है। उनके पिता पेशे से कुली थे और कभी ऐसे हालात थे कि जूते न होने की वजह से जुगराज हाकी का ट्रायल नहीं दे पाए थे। जुगराज सिंह की संघर्ष की कहानी अद्भूत है और यह विषम हालात का सामना कर रहे लोगों को हौसला देती है। जुगराज ने गरीबी और बदहाली के हालात का सामना कर अपनी मंजिल हासिल की। वह पहली बार प्लास्टिक के जूते पहनकर जालंधर सुरजीत सिंह हाकी अकादमी गए थे।
जुगराज कहते हैं, ‘ एक समय था जब मेरे पास स्टड (जूते) नहीं थे और इसी वजह से मैं दो-तीन बार ट्रायल भी नहीं दे पाया था। टर्फ पर स्टड ही पहनते हैं, परंतु जो जूते मैं स्कूल पहनता था, वही ग्राउंड में पहनकर चला जाता था, मगर वे टर्फ पर नहीं चलते थे।’ वह पहली बार प्लास्टिक के जूते पहनकर जालंधर सुरजीत सिंह हाकी अकादमी गए थे। जुगराज ने बताया कि उनके पिता सुरजीत सिंह अटारी बार्डर पर कुली थे। उनकी आय से ही परिवार का गुजारा चलता था। परिवार में वह (जुगराज) सबसे छोटे हैं। उनकी दो बड़ी बहनें और एक बड़ा भाई है। जुगराज ने बताया कि पिता सुरजीत ने लगातार 12-12 घंटे काम कर बच्चों को पढ़ाया।
उन्हें हाकी सिखाने की व्यवस्था की। बड़ी बहन को बीए के बाद ईटीटी का कोर्स करवाया, ताकि उसे नौकरी मिल सके। छोटी बहन को भी बारहवीं तक पढ़ाकर ड्राइंग टीचर का कोर्स करवाया, मगर उन्हें भी नौकरी नहीं मिली। जुगराज सिंह ने बताया कि बड़े भाई ने बारहवीं तक पढ़ाई की, लेकिन पारिवारिक हालात के चलते आगे पढ़ नहीं पाए। पिता बार्डर पर आना वाला सीमेंट ढोते थे, जिस कारण उनकी छाती में सीमेंट जम गया था। इससे वह बीमार रहने लगे थे। ऐसे में बड़े भाई ने घर को चलाने के लिए खुद जिम्मेदारी संभाली और उन्हें (जुगराज को) हाकी खेलने के लिए प्रेरित किया।
जुगराज ने बताया कि हाकी खेलने की वजह से वर्ष 2016 में उन्हें भारतीय नौसेना में नौकरी मिली। इससे परिवार की स्थिति में कुछ सुधार हुआ तो दोनों बहनों और भाई की शादी करवाई। वर्ष 2020 में कोविड की वजह से लाकडाउन चल रहा था, फिर भी उन्होंने खेलना नहीं छोड़ा। इस साल जनवरी में उनका चयन भारतीय हाकी टीम में हुआ। आखिर कामनवेल्थ गेम्स में टीम देश के लिए सिल्वर पदक लाने में कामयाब रही जिससे पूरे परिवार में खुशी है। जुगराज ने 2005 में गांव में ही खेलना शुरू किया था। यहां तीन-चार साल खेलने के बाद खालसा स्कूल में स्पोर्ट्स विंग में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने खडूर साहिब हाकी अकादमी की तरफ से खेला। फिर पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) अकादमी में दाखिला मिल गया। बेहतर खेल की बदौलत पीएनबी की सीनियर टीम में खेलने का अवसर मिला। जुगराज बताते हैं कि कोच मनिंदर सिंह पल्ली, मनजीत सिंह, सूबेदार बलकार सिंह से खेल की बारीकियां सीखकर आज वह यहां तक पहुंचे हैं।