पाठ्यक्रम प्रारूप, विकास, कार्यान्वयन एवं सुधार पर चर्चा

प्रयागराज। ईश्वर शरण पीजी काॅलेज में आयोजित सात दिवसीय आॅनलाइन कार्यशाला ‘उच्च शिक्षा में पाठ्यचर्या प्रारूप, विकास और मूल्यांकन’ के चतुर्थ दिवस प्रथम सत्र की मुख्य वक्ता डाॅ प्रेमाइडेन शामदुपने कहा कि वर्तमान वैश्विक महामारी के इस दौर में हमें आॅनलाइन शिक्षण के अंतर्गत अपना पाठ्यक्रम प्रारूप बनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या, क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ?

उन्होंने कहा कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक को पाठ्यक्रम की योजना पाठ योजना, आकलन एवं मूल्यांकन के संदर्भ में सजगता एवं सतर्कता बरतते हुए अपनी जवाबदेही तय करनी होगी। उन्होंने पाठ्यक्रम के स्वरूपों की चर्चा करते हुए कहा विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम, छात्र केन्द्रित पाठ्यक्रम एवं समस्या केन्द्रित पाठ्यक्रम में संतुलन बनाते हुए समकालीन आॅनलाइन माध्यम में इसे अधिक प्रभावी हर स्तर पर छात्रों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

पाठ्यक्रम क्रियान्वयन एवं सुधार के सम्बन्ध में हम बच्चों को कक्षा में कैसे व्यस्त रखें इसके लिए रचनात्मक एवं छात्र केन्द्रित गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा। कक्षा के माहौल को तार्किक परिणामों में बदलना होगा। छात्रों को स्व-आकलन का अवसर देते हुए उन्हें मूल्यांकन में शामिल करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें अपने पाठ्यक्रम को क्रियान्वित करने में सम्बन्धित क्षेत्र के छात्रों को सीखने सिखाने की प्रक्रिया में आॅनलाइन कनेक्टिविटि की उपलब्धता के अनुरूप पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों की पहुंच के साथ अधिकतम अंत क्रियात्मक एवं नवाचार युक्त प्रक्रियाओं के माध्यम से सीखने सिखाने की प्रक्रिया, आकलन एवं मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है।

प्रो. मनोज कुमार सक्सेना, शिक्षाशास्त्र विभाग, हिमांचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला हिमांचल प्रदेश ने ‘नई शिक्षानीति’ पर चर्चा करते हुए कहा कि नई शिक्षानीति इक्कीसवीं सदी में आत्मनिर्भर भारत की शिक्षानीति है। नई शिक्षानीति में पिछले 70 वर्षों से चली आ रही शिक्षा से सम्बन्धित व्यवस्थाओं को परिवर्तित करने का प्रयास किया गया है। तमाम तरह के अवरोध, छात्रों से सम्बन्धित जो अब तक शिक्षा व्यवस्था में शामिल थे उनको इसमें दूर कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि अब स्नातक के पाठ्यक्रम में कोई भी छात्र एक वर्ष के पश्चात सर्टिफिकेट, दूसरे वर्ष के पश्चात डिप्लोमा, तीसरे वर्ष के पश्चात डिग्री और चार वर्षों के पश्चात सम्मान सहित उपाधि प्राप्त कर सकता है। कोई भी छात्र जो कला संकाय का हो वह गणित, विज्ञान आदि भी अपनी रुचि के साथ चयन कर सकता है। कार्यक्रम के क्रियान्वयन में एफडीसी के सहायक समन्वयक डाॅ मनोज कुमार दुबे, कार्यशाला के संयोजक चीफ प्राॅक्टर डाॅ मान सिंह, सहायक संयोजक डाॅ रश्मि जैन, डाॅ जमील अहमद एवं सहायक संयोजक डाॅ अरविन्द कुमार मिश्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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