बोलो क्या करोगे,,,,,
जो आपस में लड़कर यूंही सब
मरोगे, तो फिर करो विचार तुम
मन में जरा ये,
धरा जीत कर बोलो तुम क्या करोगे,,,,,2
जो खत्म कर दोगे रिश्ते सभी से
जो मार दोगे तुम आज सभी को
तो सोचो तन्हा तुम कैसे जीवोगे
किसको दिखाओगे ये पौरुष तुम्हारा, और किसपर फिर तुम अपना शासन करोगे,
जो मार दोगे आज सभी को तो
बोलो धरा जीत कर फिर तुम क्या करोगे,,,,,,,,2
द्वेष ईर्ष्या जलन और नफरत
की आंधी ये तुझसे तेरा सब कुछ
छीन लेगी,
बच कर रहना तू इन सारी बातों से वरना तेरी सारी नेकी ये गिन
लेंगी ,
और छीन लेंगी तुझसे रिश्ते ये सारे,बदले में तुझको ये नफरत ही देंगी,
तब सोचो तुम धरा जीत कर बोलो तुम क्या करोगे,,,,,,2
जो लाशों के टीले पर होकर खड़े तुम माना हो जाओगे सब से बड़े तुम,
पर अपने पराए जब सभी होंगे
दुश्मन कोई भी तेरा हम सफर ना बनेगा ,तब सोचो जरा तुम
धरा जीत कर बोलो तुम क्या करोगे,,,,,,,2
कितना भी तन लो तुम ऊंचा बन लो , पर ये तय है एक पल तुभी मरेगा ,
जब काल आजाएगा सामने तो
देख खुद की मौत तब तुभि डरेगा ,
न बन जग में तू तानाशाह ये सत्य हैं एक दिन तुभी मरेगा,
तब धरा जीत कर बोल तू क्या
करेगा,,,,,,,2
कवि : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )