दीवानी और फौजदारी के अधिवक्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है निषेधाज्ञा कानूनः न्यायमूर्ति अग्रवाल

प्रयागराज। निषेधाज्ञा कानून दीवानी के अधिवक्ताओं के लिए वही महत्व रखती है, जो फौजदारी के अधिवक्ताओं के लिए जमानत रखती है। यह किसी पक्षकार को कोई कार्य करने या उससे विरत रहने से न्यायालय द्वारा दिये जाने वाला अनुतोष है।
यह बातें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश उत्तराखंड की ओर से दत्तोपंत ठेंगड़ी व्यायाख्यानमाला के तहत ऑनलाइन आयोजित स्वाध्याय मंडल में निषेधाज्ञा कानून विषय पर बतौर वक्ता के रूप में बोलते हुए कहीं। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि सक्षम न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त है कि वह विवादग्रस्त सम्पति को हटाने, बेचने, व्यनित करने व खुर्दबुर्द करने से रोकने के लिए स्थाई आदेश दे सकती है। साथ ही वह तब तक रहेगा जब तक अन्य आदेश पारित नही हो जाता। कहा कि वह किसी भी पक्षकार द्वारा इसकी अवज्ञा करने पर न्यायालय उसे तीन माह का सिविल कारावास या सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश या उस सम्पत्ति को बेचकर उस क्षतिपूर्ति या नुकसान की भरपाई कर सकती है। जब कोई अवैध निर्माण या अनाधिकृत निर्माण का प्रश्न हो, तब न्यायालय को लोकहित या व्यक्ति हित से इतर लोकहित को महत्व देते हुए निषेधाज्ञा का आदेश पारित करना चाहिए।

इसके अंतर्गत विशिष्ट अनुतोष अधिनियम में यह प्रावधान है कि जब तक कोई भी पक्षकार दावे में अतिरिक्त नुकसानी के लिए प्रार्थना या नुकसानी संशोधन नहीं करता है। तब तक उसे नुकसानी का विशिष्ट अनुतोष प्राप्त नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति श्री अग्रवाल ने हजारों की संख्या में ऑनलाइन अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि सक्षम न्यायालय को किसी सेवा, अंतरण, निलंबन, अनिवार्य सेवा मुक्ति, प्रतिनियुक्ति, विश्वविद्यालय के आंतरिक मामले, कुलाधिपति व शासन की नीलामी आदि वाले मामलों में निषेधाज्ञा देने से विरत रहना चाहिए।

अधिवक्ता परिषद की अध्यक्ष कमला मिश्रा ने कहा कि अधिवक्ता परिषद अधिवक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन काल में दत्तोपंत ठेंगड़ी व्याख्यानमाला का आयोजन एक मई 2020 से ऑनलाइन कर रहा है। जिसमें देश के प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं के नियमित व्याख्यान नित नए विषयों पर दिए जा रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन अधिवक्ता आदित्य शुक्ला ने किया। सजीव प्रसारण देखने वालों में कमला मिश्रा, वत्सला उपाध्याय, ज्योति मिश्रा, अजीत कुमार सिंह, वरुण, मनीष द्विवेदी आदि अधिवक्ता रहे।

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