तुम तो पढ़ते रहे देह भूगोल को, मन के इतिहास को तुमने जाना नहीं

मुक्त विश्वविद्यालय में विराट कवि सम्मेलन का आयोजन
प्रयागराज।
जब वह मेरे करीब आता है, रंग दुनिया का बदल जाता है। रूबरू है वह नहीं भी है, उसकी छुअन का हमसे नाता है।
उन्नाव से आए कवि लोकेश शुक्ला ने जब उक्त पंक्तियां गुनगुनाई तो अटल प्रेक्षागृह तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
मैनपुरी से आए बलराम श्रीवास्तव ने  नारी मन की व्यथा को शब्दों में पिरोते हुए कहा कि तुम तो पढ़ते रहे देह भूगोल को, मन के इतिहास को तुमने जाना नहीं।
उ प्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय एवं हिंदुस्तानी एकेडेमी के संयुक्त तत्वाधान में  मुक्त विश्वविद्यालय के अटल सभागार में विराट कवि सम्मेलन में कवियों ने गीत, गजल और हास्य मुक्तक प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी। वंदना शुक्ला ने प्रेम गीतों की बौछार से युवाओं को भिगो दिया।
अध्यक्षता देश के जाने-माने कवि कानपुर से आए  डॉ सुरेश अवस्थी ने की।  संचालन करते हुए डॉ श्लेष गौतम ने समां बांध दिया। इस अवसर पर बलराम श्रीवास्तव, लोकेश शुक्ल, प्रख्यात मिश्रा, सत्यशील राम त्रिपाठी, संजीव त्यागी, शिवम भगवती, वंदना शुक्ला, भावना तिवारी,राजीव नसीब, विनम्र सेन सिंह, राधा शुक्ला और विवेक सत्यांशु ने काव्य पाठ किया। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह और हिंदुस्तानी एकेडमी के सचिव देवेंद्र प्रताप सिंह में रचनाकारों को सम्मानित किया।
इस अवसर पर हिंदुस्तानी एकेडमी के सभी अधिकारी, कर्मचारी एवं विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिकारी, शिक्षक, कर्मचारी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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