जैन जगत के इतिहास में पहली बार एक गणाचार्य के सानिध्य व चार आचार्य के बीच दीक्षार्थी भाई-बहनों को क्षुल्लक-क्षुल्लिका दीक्षाएं दी गईं। जैनेश्वरी दीक्षा समारोह में गणाचार्यश्री पुष्पदंतसागर महाराज ने अंगूरी देवी को दीक्षा दी। आचार्य प्रणामसागरजी ने प्रभास भैया को दीक्षा दी, वहीं आचार्य प्रमुखसागरजी महाराज ने अपनी चार संघ की बहनों को दीक्षा संस्कार दिए।
दीक्षा से पूर्व गणाचार्यजी द्वारा सभी दीक्षार्थी बहनों से ‘आप कभी संघ छोड़ के तो नहीं जाओगे, नियमों का पालन करोगे” आदि कई सवाल-जवाब किए गए। दीक्षार्थी बहनें राखी दीदी, दीक्षा दीदी, शिवानी दीदी, नेहा दीदी को आचार्य प्रमुखसागर द्वारा संस्कारित किया गया।
आचार्य पुलकसागर गुरुदेव द्वारा मंत्रोच्चारित किए गए। पवित्र गंधोधक से बहनों को पवित्र किया। केशलोचन, वर्धमान मंत्र, व्रतों का आरोपन दिए गए। दीक्षार्थी भैया प्रभासजी को कपड़े उतरवाकर क्षुल्लक दीक्षा दी गई। दीक्षा के बाद राखी का नाम प्रमिता दीदी, शिवानी का नाम प्रमिला दीदी, दीक्षा का नाम परिधि दीदी, नेहा का नाम नेहा दीदी ही रहेगा। ये चारों इटावा की हैं, इसमें दीक्षा, शिवानी और नेहा सगी बहनें हैं।जैनेश्वरी दीक्षा से एक दिन पूर्व सभी दीक्षार्थी बहनों को गणाचार्य व आचार्य संघ के सान्न्ध्यि प्रदीप पंडितजी चंद्रकांत गुंडपा इंडी पंडित जी की उपस्थिति में मंत्रोधाार के साथ धार्मिक क्रियाएं करवाई थीं। ब्रह्मचारणी गीता दीदी के निर्देशन में सभी बहनों को मंचासीन किया गया था, जिसके बाद सभी बहनों की गोद भराई रस्म कर बहनों को हल्दी लगाई गई। बैंडबाजों के साथ धूमधाम से उनकी बिनोली निकाली गई। मंच पर दीक्षार्थी बहनों के परिवार व अन्य भक्तों द्वारा मंगल गीत गाए गए।