तेरी खुशियों के लिए रोज
रोज बोझ उठाते रहे ,तेरी हसीं
जिन्दगी को बनाने के लिए, हर घड़ी मेहनत कर के तेरे खातिर खुशियां कमाते रहे, मेरा लल्ला हैं तु मेरा मुन्ना हैं तु यही बोल कर हम बोझ उठाते रहे,,,,2
न कंधे की चोट को देखा न पैर
की मोच को देखा, भले कदम
मेरे लड़खड़ा गए कई बार चोट पर चोट हम खा गए पर हिम्मत कर के कदम बढ़ाते रहे,
तेरे खातिर सदा खुशियां कमाते
रहे , मेरा लल्ला हैं तु मेरा मुन्ना हैं तु यही बोल कर हम बोझ उठाते रहे ,,,,,,,2
टूटी चप्पल को सिला कर हम
काम चलाते रहे, कभी कदमो
को कभी खुद को कभी दिल को
हालात की चिलचिलाती धूप में
जलाते रहे, पर हर हाल में तेरे खातिर खुशियां कमाते रहे,मेरा लल्ला है तु मेरा मुंन्ना हैं तु यही बोल कर बोझ उठाते रहे,,,,2
आज कमर जो झुकी उम्र मेरी
ढली अब जो थोड़ी थकावट होने
लगी , जिन कंन्धो पर सारी उम्र बोझ उठता रहा, जिन कदमो से चलकर कमाता रहा जिन बच्चो
पर हल पल ख़ुद को लुटाता रहा
आज उनके लिए मैं बोझ बन
गया,,,,,,2
जिनकी खुशियों के खातिर बोझ उठाता रहा, अपने सारे गम व दर्द छुपाता रहा , आज उनके लिए मैं
बोझ बन गया , गाली खाने का तमाशा अब रोज का बन गया मेरा जीवन अब बच्चो के लिए बोझ बन गया,,,,2
आँखों से आशुओँ की बरसात हो रही हैं, आँखों के संघ संघ आज मेरी आत्मा भी रो रही हैं, ,,,,,,
कहते हैं रसिक तिवारी बात मेरी मॉन जाओ , माता पिता को कोई
कभी मत रुलाओ, उनकी करो सेवा शीश उनकी चरणों मे झुकाओ, हर माता पिता को नमन हैं,,,,,,, 2
कवी : रमेश हरिशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी)