सूर्य षष्ठी सिर्फ भगवान भास्कर की ही आराधना का पर्व नहीं है। चार दिवसीय पर्व में भगवान भास्कर की बहन देवसेना, जिन्हें छठी मईया के नाम से जाना जाता है, के साथ उनकी दोनों पत्नियों की भी आराधना की जाती है। यह एकमात्र लोक पर्व है जिसमें बेटियों के कल्याण के लिए देवसेना, उषा और प्रत्यूषा को भी प्रसन्न करने के सुयत्न किए जाते हैं।
छठ लोकपर्व को सनातन संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष देखा जाता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातकाल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर नमकन किया जाता है।
छठ में परवैतिन करती हैं तप छठ व्रत एक तपस्या है। यह व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। व्रती को ऐसे कपड़े पहनने अनिवार्य हैं जिनमें सिलाई न की गई हो।