चीन की सरकार ने मंडारिन भाषा को अध्यापकों के लिए अनिवार्य कर दिया है। दरअसल, चीन की इस राष्ट्रीय भाषा को केवल 40 फीसद चीनी नागरिक ही बोलना जानते हैं। एचके पोस्ट के अनुसार चीनी सरकार ने सभी भावी अध्यापकों के लिए मंडारिन की मानक परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया है। उन्हें नासिर्फ भाषा बोलनी आनी चाहिए बल्कि वह आनलाइन भी इस भाषा में काम करने में सक्षम होने चाहिए।
उल्लेखनीय है कि एक सदी से भी अधिक समय से मंडारिन को चीन की आधिकारिक भाषा बनाने के बावजूद चीन में तिहाई आबादी अभी भी उनकी जनसामान्य भाषा यानी मंडारिन को नहीं बोलती है। चीनी अधिकारियों पर दबाव डालकर उन्हें भाषाई एकता के लिए प्रतिबद्ध किया जाता है। ताकि विभिन्न साम्राज्यों और शासकों की ओर से चीन की मुख्य भूमि की भाषा मंडारिन को बढ़ावा देने के लिए सदियों से प्रयास हो रहा है। लेकिन लोगों के बीच यह उतनी प्रचलित नहीं है। सरकार का मानना है कि एक भाषा होने से लोगों में एकता बढ़ेगी और मुख्य भूमि चीन में अधिक स्थिरता व मजबूती रहेगी। अविभाजित चीन के लिए एक भाषा जरूरी है। इस मकसद को हासिल करने के लिए चीन की सरकार ने आधिकारिक भाषा को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए सभी प्रमुख मीडिया और विभिन्न प्रतिष्ठानों के लिए दो हजार नियम बना रखे हैं।
मंडारिन को अधिकाधिक बढ़ावा देने के लिए कुछ समय पहले चीन के शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षा पाठ्यक्रमों से अंग्रेजी भाषा को पूरी तरह से हटाने का फैसला भी लिया हुआ है। चीन सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि वर्ष 2025 तक 85 फीसद चीनी लोग मंडारिन बोलने लगें। इसी नीति के तहत वर्ष 2035 तक मंडारिन को विश्व की प्रमुख भाषा बनाने का भी लक्ष्य है।
चीन सरकार के इस रुख से चीन की क्षेत्रीय भाषाओं जैसे कैनटोनीज, हूकिएन के लिए भी खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा, तिब्बती, मंगोलिया और उइगर भाषा की भी जमकर उपेक्षा की जा रही है।