चंद्रयान-3- 14 जुलाई को होगा लॉन्‍च

चंद्रयान-3 यह इस समय देश का सबसे चर्चित विषय बना हुआ है। इस मिशन की जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं और इसको लांच करने का काउंटडाउन शुरू हो गया है। जी हां, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 14 जुलाई को चंद्रयान-3 लॉन्च करने वाला है।

चंद्रयान-3 इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनइजेशन का एक बहुप्रतीक्षित मिशन है। पूरे देश को इसका बेसब्री से इंतेजार है। प्रत्येक भारतवाशी के साथ पूरी दुनिया की निगाहें इस मिशन पर टिकी हैं। चंद्रयान-3 लॉन्चिंग के आखिरी चरणों में है। इस मिशन को लेकर इसरो लगातार कोई न कोई जानकारी साझा कर रहा है। चंद्रयान-3 के लांच की तारीख नजदीक आ रही है श्रीहरिकोटा में हलचल बढ़ती जा रही है। इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 की इनकैप्सुलेटेड असेंबली को  रॉकेट से जोड़ दिया गया है। इसी इनकैप्सुलेटेड असेंबली में चंद्रयान-3 मौजूद है। मिशन चंद्रयान-2 का ही फॉलोअप मिशन है। भारत ने 2019 में चंद्रयान-2 के जरिए इस मिशन को हासिल करने की कोशिश की थी। हालांकि, इस मिशन में सफलता नहीं मिली थी, जिसके बाद अब चंद्रयान-3 की बात सामने आई और अब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग होने वाली है। चंद्रयान-3 के लैंडर में चार पेलोड हैं, जबकि छह चक्कों वाले रोवर में दो पेलोड हैं।इस बार चंद्रयान-2 मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। इस मिशन में एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। आपको बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन की लैंडिंग साइट को ‘डार्क साइड ऑफ मून’ कहा जाता है क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।इसरो ने बताया कि चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम देने का फैसला किया है, जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे। आपको बता दें कि लैंडर का नाम विक्रम ही होगा, जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस रोवर का नाम प्रज्ञान होगा।

आखिर चंद्रयान 3 मिशन क्यों है खास?

चंद्रयान 3 मिशन सबसे अलग और सबसे खास है। अब तक दुनिया के जितने भी देशों ने अभी चंद्रमा पर अपने यान भेजे हैं, उन सभी की लैंडिंग चांद के उत्तरी ध्रुव पर हुई है, लेकिन चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरे वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। इस मिशन में एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है।

आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग की जाएगी। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के अनुसार, अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। आपको बता दें कि यह चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने में एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान -2 का अनुवर्ती मिशन है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के बारे में –

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी है। 1969 में स्थापित, इसरो देश के अंतरिक्ष अनुसंधान, विकास और उपग्रह कार्यक्रमों के लिए जिम्मेदार है। इसका मुख्यालय कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में स्थित है। इसरो उपग्रह संचार, रिमोट सेंसिंग, मौसम पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन में भी शामिल रहा है। इसने INSAT और रिसोर्ससैट जैसे कई संचार उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिन्होंने भारत में दूरसंचार और प्रसारण सेवाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसरो का प्राथमिक उद्देश्य भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास और उपयोग करना है। एजेंसी उपग्रह प्रक्षेपण, ग्रहों की खोज और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों सहित विभिन्न अंतरिक्ष अभियानों का संचालन करती है।

इसरो की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां-

1. चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण : 2008 में इसरो ने भारत का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इसने चंद्रमा की परिक्रमा की और चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं (molecules) की खोज की।

2. मार्स ऑर्बिटर मिशन -(एमओएम): 2013 में, इसरो ने मार्स ऑर्बिटर मिशन लॉन्च किया, जिसे मंगलयान के नाम से भी जाना जाता है। यह किसी एशियाई देश का पहला सफल मंगल मिशन और अब तक का सबसे सस्ता मंगल मिशन बना।

3. भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस): इसरो ने आईआरएनएसएस, एक क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली विकसित और तैनात की है, जो भारतीय क्षेत्र में स्थिति और समय निर्धारण सेवाएं प्रदान करती है। यह प्रणाली ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के समान है।

 

4. जीएसएलवी एमके: इसरो ने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (जीएसएलवी एमके III) को सफलतापूर्वक विकसित किया, जो एक भारी-लिफ्ट लॉन्च वाहन है जो बड़े उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है। चंद्रयान-2 सहित विभिन्न मिशनों को लॉन्च करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

5. चंद्रयान-2: 2019 में इसरो ने भारत का दूसरा चंद्र मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया। हालांकि, चंद्रयान का लैंडर विक्रम चंद्रमा पर लैंड करने से पहले ही कुछ किमी की ऊंचाई पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दौरान लैंडिंग साइट से संपर्क टूटने के कारण लैंडिंग सफलतापूर्वक नहीं हो पाई थी।

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