चंद्रयान मिशन में प्रयागराज की नेहा अग्रवाल भी जुड़ी है

चंद्रमा की सतह पर उतरने में चंद्रयान-दो की विफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-तीन को सुरक्षित उतारने के लिए हेजार्डस डिटेक्शन मैकेनिज्म तैयार करने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और इसरो के विज्ञानी में अहम भूमिका निभाई है। इस मैकेनिज्म का प्रयोग से चंद्रमा की सतह पर उतरने के दौरान लैंडर खुद ही क्रेटर या गड्ढे के खतरे को भांप लेगा और स्वयं सुरक्षित सतह को खोजकर लैंड करेगा। इसमें इंटेलिजेंस सेंसर प्रयोग किए गए हैं। यह प्रणाली बनाने वाली टीम में शामिल इसरो के वैज्ञानिक हरिशंकर गुप्ता इवि के जेके इंस्टीट्यूट के पूर्व छात्र रहे हैं और चंद्रयान-एक, दो और अब तीसरे मिशन के साथ महत्वपूर्ण भूमिका में जुटे रहे।

इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में कार्यरत हरिशंकर गुप्ता ने इवि के जेके इंस्टीट्यूट से वर्ष 1998 में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन से बीटेक किया और इसके बाद बीएचयू से एमटेक करने के बाद वर्ष 2002 में इसरो ज्वाइन किया। एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में कार्यरत सेंसर डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे थे। चंद्रयान वन, टू और थ्री प्रोजेक्ट में शामिल रहे।

हरिशंकर ने बताया कि चंद्रयान टू में ऑर्बिटर और लैंडर था। आर्बिटर तो वहीं है पर पिछली खामी को ध्यान में रखते हुए उनकी टीम को लैंडिंग के लिए रडार डिजाइन करना था। सबसे बड़ी चुनौती लैंडर को सुरक्षित उतारने की थी, क्योंकि पिछले साल लैंडिंग सफल नहीं रही। ऐसे में सुरक्षित लैंडिंग के लिए नई सेंसर आधारित प्रणाली विकसित की गई। इससे लैंडर किसी क्रेटर या गड्ढे की पहचान कर सकेगा। साथ ही इस बार चंद्रमा पर भेजे गए रोवर में इमेजिंग प्रणाली तैयार करने वाली टीम का भी हिस्सा हैं।

चंद्रयान मिशन में प्रयागराज की नेहा अग्रवाल भी जुड़ी है। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान एमएनएनआईटी से 2017 में बीटेक करने के बाद इसी वर्ष बेंगलुरु में एक वैज्ञानिक के रूप में इसरो में शामिल हुईं और चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 परियोजनाओं में काम किया है।

सिविल लाइंस निवासी नेहा अग्रवाल के पिता संजय कुमार अग्रवाल इंडियन बैंक सिविल लाइंस प्रयागराज से सेवानिवृत्त हैं। मां वंदना अग्रवाल सरकारी शिक्षक हैं और बहन प्रांजली और भाई पुनीत अग्रवाल भी इंजीनियर है।

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