गोविंद द्वादशी व्रत से मिलती है समृद्धि

आज गोविंद द्वादशी है, हिन्दू धर्म में गोविंद द्वादशी का खास महत्व है तो आइए हम आपको गोविद द्वादशी व्रत की विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।

गोविंद द्वादशी व्रत के बारे में खास जानकारी 

हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोविंद द्वादशी व्रत होता है। इस वर्ष यह शनिवार 4 मार्च 2023 को है। गोविंद द्वादशी के दिन नरसिंह द्वादशी भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान गोविंद की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

गोविंद द्वादशी से जुड़ी पौराणिक व्रत कथा 

शास्त्रों में गोविंद द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्र थे। हिरण्यकशिपु के पुत्र का नाम प्रह्लाद था वह विष्णु भगवान का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु उसको मारने का प्रयास करता लेकिन हर बार वह बच जाता। एक बार भरी सभा में प्रहलाद ने जब भगवान विष्णु के सर्वशक्तिमान होने की बात कर रहा था तभी हिरण्यकश्यपु को क्रोधित हो गया और उसने कहा कि अगर तुम्हारा भगवान है तो उसे इस खम्बे से बुलाकर दिखाओ। उसके बाद भक्त प्रह्लाद ने भक्ति से भगवान विष्णु को याद किया तब श्री विष्णु खम्बे से नृसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद को आर्शीवाद दिया कि इस दिन मेरे स्मरण एवं पूजन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और सभी कष्ट दूर होंगे।

गोविंद द्वादशी व्रत में ये पूजा सामग्री करें इस्तेमाल 

पंडितों के अनुसार गोविंद द्वादशी व्रत की पूजा में केले का पत्ता, आम का पत्ता, रोली, मोली, कुमकुम, फूल, फल, तिल, घी, दीपक, पान का पत्ता, नारियल, सुपारी, लकड़ी, भगवान की फोटो, चौकी, आभूषण तथा तुलसी पत्र अवश्य होना चाहिए।

गोविंद द्वादशी व्रत के दिन भक्त गण ऐसे करें पूजा

शास्त्रों के अनुसार गोविंद द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करनी चाहिए। इस पूजा में मौली, रोली, कुंमकुंम, केले के पत्ते, फल, पंचामृत, तिल, सुपारी, पान एवं दूर्वा आदि रखना चाहिए। पूजा के लिए (दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा) मिलाकर पंचामृत से भगवान को भोग लगाएं। इस दिन द्वादशी कथा का वाचन करें। इसके बाद लक्ष्मी देवी एवं अन्य देवों की स्तुति-आरती की जाती है।

पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। फिर खुद भोजन करें। इस दिन अपने पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान होता है। यह व्रत सर्वसुखों के साथ-साथ बीमारियों को दूर करने में भी कारगर है। अत: फाल्गुन द्वादशी के दिन पूरे मनोभाव से पूजा-पाठ आदि करते हुए दिन व्यतीत करना चाहिए। इस दिन भगवान गोविंद की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

गोविंद द्वादशी व्रत की महत्ता 

गोविंद द्वादशी व्रत से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं। पंडितों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से पितृदोष शांत होते हैं तथा किसी प्रकार का धनाभाव नहीं रहता है। पूजा के बाद गोविंद द्वादशी कथा जरूर सुननी चाहिए। पूजा अर्चना के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देना चाहिए। यह व्रत भी धन, धान्य व सुख से परिपूर्ण करने वाला है। रोगों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला है, जिसे गोविन्द द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इस द्वादशी को भीम द्वादशी और तिल द्वादशी भी कहा जाता है। इसके व्रत से मानव जीवन के समस्त रोगादि छूट जाते हैं और अंत में वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती।

गोविंद द्वादशी व्रत की ऐतिहासिकता

इस व्रत को भगवान ने भीष्म को बताया था और उन्होंने इस व्रत का प्रथम पालन किया जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी व्रत हुआ। इसकी विधि एकादशी के समान ही है। जन्म-जन्मांतरों के एक अहीर अर्थात यादव कन्या ने इस व्रत का पालन किया था जिससे वह अप्सराओं की अधीश्वरी हुई और वही उर्वशी नाम से विख्यात है। यह व्रत कलियुग के पापों को नष्ट करने वाला है। माघ मास की द्वादशी परम पूजनीय कल्याणिनी है। इस तिथि पर पितृ तर्पण आदि क्रियाएं की जाती हैं तथा श्रद्धा व भक्तिपूर्ण ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के दान, हवन यज्ञादि क्रियाएं भी की जाती हैं। गोविंद द्वादशी का व्रत एकादशी की भांति पवित्रता व शांत चित से श्रद्धापूर्ण किया जाता है। यह व्रत मनोवांछित फलों को देने वाला और भक्तों के कार्य सिद्ध करने वाला होता है। इस व्रत को नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर श्रद्धा-विश्वासपूर्ण करना चाहिए। व्रत पूजा के सारे नियम एकादशी के व्रत की भांति ही हैं। यह व्रत पुत्र-पौत्र धन-धान्य देने वाला है।

पूजा के नियम भी जानें 

प्रात:काल स्नान के बाद संध्यावंदन करने के पश्चात षोडशोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने के उपरांत स्वत: भोजन करना चाहिए। संपूर्ण व्रत को भगवान लक्ष्मीनारायण को अर्पित कर देना चाहिए और संपूर्ण घर-परिवार सहित अपने कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करनी चाहिए।

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