उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आने वाले भारतीय हॉकी टीम के जबरदस्त मिडफील्डर राजकुमार पाल का चयन पेरिस ओलंपिक के लिए जाने वाली टीम में हुआ है। राजकुमार पाल ने करमपुर के मेघ बरन सिंह स्टेडियम में 8 साल की उम्र से ही हॉकी खेलना शुरू किया था। पिछले चार सालों से वह नेशनल टीम का हिस्सा है और बेहतरीन खेल की वजह से अब ओलंपिक टीम में चयन हुआ है। इससे पहले वह कई अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं, उन्होंने 2020 में बेल्जियम के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था। हॉकी में अपनी अलग पहचान बना चुके राजकुमार पाल को यूपी सरकार की ओर से लक्ष्मण पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
उनकी मां मनराजी देवी ने तमाम चुनौतियों के बाद भी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। राजकुमार और उनके दो भाइयों को सीमित संसाधनों में अच्छी परवरिश दी। इस बीच करमपुर गांव में स्थापित करमपुर स्टेडियम, राजकुमार पाल में जीवन में मिल का पत्थर साबित हुआ। खेलों के प्रति अपने रुझान को देखते हुए वह इस स्टेडियम के हॉकी मैदान में प्रतिदिन कठिन अभ्यास करने लगे। एक- एक कर जनपद स्तर से टूर्नामेंट खेलने का सफर आज अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा है। बीते कई वर्षों से राजकुमार पाल भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा हैं। राजकुमार पाल ने बताया कि वह करमपुर के मेघबरन स्टेडियम के चलते इस मुकाम तक आए हैं। यहीं से उन्होंने हाकी के शुरुआती हुनर को साधा।
8 साल की उम्र में अपने पिता के निधन के बाद गांव के ही मेघबरन सिंह हॉकी स्टेडियम में राजकुमार ने हॉकी की बारीकियां सीखना शुरू कर दिया था। अब एशिया कप और वर्ल्ड कप के बाद पेरिस ओलंपिक में उनका चयन हुआ है। सिलेक्शन की खबर के बाद उनके गांव और स्टेडियम प्रशासन में खुशी की लहर दौड़ी पड़ी थी। करमपुर स्टेडियम के निदेशक अनिकेत सिंह ने बताया कि राजकुमार पाल के दो भाई भी हैं जिनमें से एक सेना में है और दूसरा भाई रेलवे में है। तीनों भाई ही हॉकी के मंजे हुए खिलाड़ी हैं और बाकी दोनों भाइयों ने स्पोर्ट्स कोटे में ही नौकरी हासिल की है।
पूर्व सांसद और मेघबरन सिंह हॉकी स्टेडियम के पूर्व निदेशक राधे मोहन सिंह ने बताया कि राजकुमार पाल की उम्र जब करीब 8 साल थी। उनके पिता शुरुआत में ट्रक चलाया करते थे। पिता के निधन के बाद उनकी मां मनराजी देवी ने तीनों भाइयों का पालन-पोषण किया। उनके बड़े भाई जोखन सेना में हैं और दूसरे भाई राजू रेलवे में हैं। सभी को स्वर्गीय ठाकुर तेज बहादुर सिंह स्टेडियम ले जाकर हॉकी की बारीकियां सिखाने लगे। इसके बदले तीनों भाई खेल के बाद उनके परिवार और खेतों का काम कर दिया करते थे। धीरे-धीरे यह सिलसिला चलता रहा और हॉकी की बारीकियां सीखते-सीखते नेशनल गेम तक खेलना शुरू कर दिया। राजकुमार पाल के कोच इन्द्रदेव ने बताया कि राजकुमार ने आठ साल की उम्र में इस स्टेडियम में खेलना शुरू कर दिया था। वह बचपन से ही बहुत अनुशासित खिलाड़ी रहा है। उसके अंदर सीखने की ललक शुरू से थी, जिसकी वजह से वह लागातर आगे बढ़ता रहा और आज ओलंपिक में जाने वाले गाजीपुर के पहले खिलाड़ी बन गये हैं।