प्रयागराज ।
विख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री डा० अजय कुमार सोनकर ने बताया कि गंगा के जल में पाये जाने वाले बैक्टीरियोफेज के कारण ये संभव होता है। गंगा के जल में ये गुण किसी अन्य नदी की तुलना में सबसे प्रभावशाली होता है। गंगा नदी में बैक्टेरियोफेज की ११०० प्रजातियाँ पायी जाती है। उन्होंने बताया कि मैंने स्वयं गंगा के जल का अपनी प्रयोगशाला में अनेकों बार अध्ययन किया है।
डा० अजय ने बताया कि मुझे ये विदित था कि करोड़ों लोग इस महाकुम्भ में डुबकी लगायेंगे। महाकुम्भ शुरू होने से पहले मैंने दिनांक ०९ नवम्बर २०२४ को अख़बारों में पढ़ा कि NGT ने कहा है कि गंगा का पानी आचमन व स्नान योग्य नहीं है। मैंने विभिन्न स्नान के घाट से पानी के नमूने इकट्ठा किये और अपनी प्रयोगशाला में जाँचा। मुझे गंगा के जल में ऐसे कोई अवयव नहीं मिले जो रोगकारी हो सकते थे।
उन्होंने आगे बताया कि मुझे तीव्र जिज्ञासा रही कि मैं करोड़ों लोगों के स्नान से गंगा के पानी में बदलाव की जाँच कर सकूँ और बैक्टीरिया को बैक्टीरियोफेज के द्वारा नष्ट किये जाने की प्रक्रिया का अध्ययन कर सकूँ। इसलिये लगातार कुछ दिनों के अंतराल में मैंने विभिन्न घाटों से पानी के नमूने इकट्ठा किये और उनके जाँच में मुझे बैक्टीरिया का स्तर करोड़ों लोगों के स्नान के कारण उत्पन्न प्रदूषण के अनुपात में बढ़ा हुआ कभी नहीं मिला। अपने अध्ययन से मैंने ख़ुद पर सम्मोहन का प्रभाव महसूस किया। अचानक दो दिन पहले फिर से अख़बारों में ख़बर आयी कि NGT ने कहा है कि गंगा का जल आचमन व स्नान योग्य नहीं है। मैं अचम्भित हुआ, मुझे नहीं पता कि जाँच किसके द्वारा की गयी नमूने कहां से इकट्ठे किये गये?
किन्तु आनन-फ़ानन में मैंने कल शाम पाँच स्नान के घाटों से जल के नमूने इकट्ठा किये। मैंने पाया कि पिछले दिनों की अपेक्षा जल का स्तर बहुत कम है और नहाने के अरैल के दो घाटों पर बहुत ज़्यादा गंदगी दिख रही थी, मैंने स्नान कर रहे लोगों के बीच के पानी के पाँच नमूने इकट्ठा किये। और अपनी प्रयोगशाला में उनको ले आया। मैं प्राथमिक जाँच करते ही हतप्रभ हो गया कि गंगा का पानी में बैक्टीरियल ग्रोथ ऐसी नहीं थी कि जल रोगमय हो जाए।
डा० सोनकर ने कहा कि यहाँ मैं बताना चाहता हूँ कि पानी में बैक्टीरिया की वृद्धि अक्सर पानी को अधिक अम्लीय बना देती है क्योंकि बैक्टीरिया अपने चयापचय के हिस्से के रूप में अम्लीय उपोत्पाद उत्पन्न करते हैं, जो आसपास के पानी में लैक्टिक एसिड या कार्बोनिक एसिड छोड़ते हैं, जिससे पीएच स्तर कम हो जाता है और यह अधिक अम्लीय हो जाता है। किन्तु गंगा जल के पाँचों नमूने अम्लीय नहीं थे। माइक्रोस्कोप में परीक्षण में जीवित बैक्टीरिया की तादाद बहुत कम थी।
मैंने इंक्यूबेशन तापमान पर नमूनों को रखा लेकिन १४ घटों के बाद भी बैक्टीरिया की तदाद में ना कोई वृद्धि हुई ना ही उसमें कोई दुर्गंध ही नोटिस हुई। मेरी प्रयोगशाला में जल के पाँचों नमूने मौजूद हैं। कोई भी मेरे साथ किसी भी घाट पर चले जल का नमूना इकट्ठा करे, और मेरे साथ प्रयोगशाला में उसकी जाँच में मेरी कही बात का मिलान जब चाहे कर ले।
डा० अजय ने कहा कि यहाँ ये बात ध्यान देने की है कि जिस प्रकार गंगा के जल को महा कुम्भ के पहले से ही अति दूषित बताया गया है। यदि ऐसी स्थिति होती तो हाहाकार मच गया होता। अस्पतालों में पैर रखने की जगह नहीं होती। प्रशासन कुछ भी करके करोड़ों लोगों के संक्रमण और दूषित जल से जन्मे रोगियों को छुपा नहीं सकता था। ये गंगा के स्वयं को शुद्ध कर लेने की शक्ति है कि पचास करोड़ लोगों को अपने गले लगाने के बाद भी गंगा अभी भी रोगमय नहीं है किसी भी मानव के लिये। अनगिनत लोगों ने गंगा स्नान किया है। जिनमें जा जाने कितने रोगी व कमजोर प्रतिरोधक शक्ति वाले लोग रहे होंगे। गंगा के स्नान के कारण किसी को कुछ भी नहीं हुआ। अगर होता तो देश के तमाम शहरों के अस्पतालों में पैर रखने की जगह नहीं होती।