“लाखों मनीषियों सद्गुरुओं ने गंगा के तट पर परम उपलब्धि की, गंगा भी उसी प्राण आत्म परमात्म परम ऊर्जा से आच्छादित, आलोकित हो गयी जिससे आज भी जीव जगत का कल्याण हो रहा है।गंगा” का पानी सिर्फ पानी नहीं, वैसे सामान्यतः पानी का भी अपना गुण धर्म होता है, जब भी कोई व्यक्ति, अपवित्र व्यक्ति पानी के पास बैठता है, पानी के अंदर जाने की तो बात ही अलग, सिर्फ पानी के पास भी बैठ जाता है तो पानी प्रभावित हो जाता है और पानी उस व्यक्ति की तरंगों से आच्छादित हो जाता है अर्थात पानी उस व्यक्ति की तरंगों को अपने में ले लेता है, इसलिए दुनियां के अधिकतम धर्मों ने पानी का उपयोग किया, आपने कभी न कभी देखा होगा कि “साधु-संत-महात्मा फकीर” पानी को एकटक शांत भाव से देखते हुए कुछ मंत्रो को पढ़ते है, अर्थात पानी में विशेष शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति विशेष को पिलाते हैं जिससे नकारात्मक विचार भाव का शमन हो जाता है और व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है, यदि कोई “सद्गुरु-सदवेत्ता” चाहे तो विशिष्ट मंत्रो के माध्यम से पानी को चार्ज कर विभिन्न असाध्य रोगों का उपचार कर सकता है, करता भी है, आओ आ जाओ! मैं तुम्हें अपनी सकारत्मक तरंगों से परिपूर्ण कर दूं……
अतएव पानी के माध्यम से एक विशिष्ट व्यक्ति की तरंगों को किसी अन्य व्यक्ति में सहज ही पहुँचाना आसान है क्योंकि पानी अति शीघ्रता से चार्ज्ड हो जाता है, वह समय दूर नही की पूर्व की भांति पानी को अभमंत्रित कर विभिन असाध्य रोगों का शमूल नाश किया जाए, पानी पुनः औषधि बन जाये, ठीक इसी तरह से “गंगा” का पानी सिर्फ पानी नही रह गया है बल्कि समस्त पाप ताप, दुख दर्द, शारीरिक मानसिक पीड़ा को शमन करने की शक्ति क्षमता रखता है, गंगा में स्नान कर , गंगा के पानी को पीकर अपने समस्त रोगों को दूर किया जा सकता है…….
क्योंकि लाखों लाखों वर्ष से भारत के “मनीषी, सद्गुरु” सदवेत्ता गंगा के किनारे बैठ कर “प्रभु-परमात्मा” को पाने का प्रयास-प्रार्थना करते रहे हैं और जब भी कोई एक भी मनीषी गंगा के किनारे “परमात्मा” को पाया तो “गंगा” भी उस उपलब्धि से परिपूर्ण हो गयी, गंगा भी उसकी तरंगों से आच्छादित हो गयी, इस तरह से गंगा का किनारा, गंगा की रेत के कण कण, गंगा का पानी , सब, इन लाखों वर्षों में एक विशेष रूप से, आध्यात्मिक रूप से चार्ज्ड हो गयी, “प्रभु-परमात्मा” की विशिष्ट ऊर्जा तरंगों से तरंगायित हो गईं, समस्त पापों तापों की शमूल नाश करने की शक्ति क्षमता से युक्त हो गईं, इसलिए “गंगा” का पानी सिर्फ पानी नही रहा बल्कि समस्त विषों के शमूल नाश करने की शक्ति क्षमता से युक्त हो औषधि बन गया, मानव जाति के लिए गंगा अमृत बन गयी, तीर्थ नही महातीर्थ बन गयी “माँ गंगा”…….
इसलिए अन्य नदियाँ साधारण है पर “गंगा” नदी असाधारण हैं, गंगा एक आध्यत्मिक यात्रा हैं, सदियों से गंगा एक आध्यत्मिक प्रयोग हैं, लाखों लाखों वर्षों तक लाखों लोगों का उसके निकट मुक्ति को पाना, लाखों लोगों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को उपलब्ध होना और ये सारे लोग अपनी जीवन ऊर्जा को “गंगा” के पानी पर, उसके किनारों पर छोड़ गए, जिससे आज भी जन-जन के जीवन का उद्धार हो रहा, जीवन मे कल्याण हो रहा, आओ आ जाओ, “माँ-गंगा” का दर्शन कर, उनमें स्नान कर अपने जीवन के पापों-तापों का शमन कर, “सद्गुरु” श्री कमल चरणों मे बैठ कर “प्राण-प्रयागराज” में प्रवेश कर, अपने “आत्म-ज्योति” को प्रज्वलित कर, “परमात्म-साक्षत्कार” कर हम भी अपने जीवन को परिपूर्ण करें, जीवन का उद्धार करें, मानव जीवन को सिद्ध करें, एकमात्र “सद्गुरु” से प्रीत ही जीवन में “गंगा-प्रवाह” की ओर गतिशील करता है, गंगा में स्नान करने का अवसर प्रदान करता है, दिव्य प्राण आत्म प्रकाश से आलोकित करता है, प्रभु परमात्मा की परम उपलब्धि में सहायक होता है,आओ आ जाओ,तुम सबकी प्रतीक्षा में तुम्हारा अपना ही…….