कौशाम्बी का वर्णन ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण व महाभारत में: डाॅ अहमद

प्रयागराज। ईश्वर शरण पीजी कालेज में फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर के अंतर्गत चल रहे फैकल्टी इन्डक्शन ट्रेनिंग प्रोग्राम में देश के कोने-कोने से आये प्रतिभागियों को कौशाम्बी के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक बौद्ध एवं जैन पुरास्थलों के शैक्षणिक भ्रमण के दौरान कौशाम्बी के प्रारम्भिक इतिहास पर चर्चा करते हुए डाॅ. जमील अहमद ने अध्यापकों के दल को बताया कि कौशाम्बी का वर्णन ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण तथा महाभारत में मिलता है।
ईश्वर शरण पीजी कालेज के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं एफ.डी.सी कार्यसमिति के सदस्य डाॅ.जमील अहमद ने प्रतिभागियों को पुरास्थलों के विषय में उपयोगी और शोधपरक जानकारी देते हुए बताया कि बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय व महावस्तु तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यह कौशाम्बी नगर वत्स महाजन पद की राजधानी थी। कौशाम्बी की गणना बुद्ध कालीन छह प्रमुख नगरों में की जाती है। छठी शताब्दी ईसवी पूर्व में उदयन यहां के शासक थे। बौद्ध परम्परा के अनुसार महात्मा बुद्ध यहां दो बार आये और अपना छठवां एवं नवां वर्षावास (चतुर्मासा) यहीं व्यतीत किया।
उन्होंने आगे बताया कि चैथी सदी से सातवीं सदी के मध्य दो चीनी यात्री फाहयान और व्हेनसांग यहां आये और अपने यात्रा वृत्तान्त में कौशाम्बी की तत्कालीन स्थिति का सजीव वर्णन किया। व्हेनसांग के विवरण को आधार बनाते हुए 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रथम सर्वेक्षक एलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां की यात्रा की और अपने सघन सर्वेक्षण के पश्चात 1971 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया कि सरकारी अभिलेखों में दर्ज वर्तमान को समईनाम व कोसम खिराज ग्राम ही प्राचीन कौशाम्बी था। डाॅ. अहमद ने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. जी.आर शर्मा ने यहां 1949 से 1965 तक अनवरत उत्खनन कार्य करवाया था। प्रतिभागियों को उत्खनित क्षेत्रों में अशोक स्तम्भ क्षेत्र, घोषिता रामचैत्य-विहार, श्येन चिति, सुरक्षा प्राचीर तथा यमुना किनारे स्थित राजप्रसाद का भ्रमण तथा सम्बंधित जानकारियों से अवगत कराया गया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में प्रतिभागियों ने जैन तीर्थ एवं पुरास्थल प्रभास गिरि की दोनों पहाड़ियों, गुफाओं तथा मंदिरों का दर्शन किया। जैन मान्यता के अनुसार यह स्थान जैन धर्म के छठवें तीर्थंकर पद्मप्रभ की जन्म व तपस्थली थी। गंगा और यमुना के द्वाबा में स्थित कौशाम्बी की सांझी विरासत को देखकर प्रतिभागीगण अभिभूत हुए। इस शैक्षणिक भ्रमण में एफ.डी.सी कार्यसमिति के प्रभारी डॉ.धीरज चैधरी, कार्यक्रम संयोजक डॉ.आनंद सिंह तथा कार्यक्रम सह संयोजक डॉ.विकास कुमार सहित पचास से अधिक प्रतिभागीगण मौजूद थे।

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