‘कोरोना संकट और भारत: चुनौती एवं रणनीति’ पर चर्चा

देश में आंतरिक विस्थापन की भयावह स्थिति: कुलसचिव

प्रयागराज। कोरोना संकट एक विश्वव्यापी महामारी के रूप में सामने आया है, जिसने मानव जीवन पर प्राणघातक हमला किया है। जिससे पूरे विश्व का सामाजिक, आर्थिक एवं व्यवसायिक ढांचा चरमरा गया है। इस लॉकडाउन ने भारत की आर्थिक, व्यवसायिक, शैक्षिक एवं अन्य संबंधित गतिविधियों को न केवल प्रभावित किया वरन पूरी तरह से ठप कर दिया है। लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। दुकानें एवं व्यवसाय बंद हैं और देश में आंतरिक विस्थापन की भयावह स्थिति है।

कुलसचिव डाॅ अरूण गुप्ता
उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कुलसचिव डॉ. अरुण कुमार गुप्ता ने हिन्दुस्थान समाचार से वार्ता के दौरान बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में कोविद-19 का कहर एशिया महाद्वीप से ज्यादा है। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि अगले चरण में एशिया महाद्वीप और विशेषकर दक्षिण एशिया में इस रोग का प्रसार होगा। ऐसे में भारत जैसे विशाल तथा कमतर स्वास्थ्य सेवा वाले देश में यह स्थिति और भयावह होने वाली है। विशेषकर उन मजदूरों और श्रमिकों के संदर्भ में जो रोजगार खत्म होने के कारण अपने घर और गांव लौट रहे हैं। जहां एक ओर उनके लिए गांव में रोजगार नहीं है दूसरी ओर महानगरों में जिन कारखानों से वो आए हैं, वह कारखाने भी श्रमिकों के अभाव में सीमित संसाधनों से अपना अपेक्षित उत्पादन नहीं दे पाएंगे। आज महत्वपूर्ण यह है कि किया क्या जाना चाहिए ? यह हमारे सामने गंभीर चुनौती है और इससे निपटने की रणनीति क्या होनी चाहिए ?

उन्होंने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य है। कोविड-19 के संक्रमण से निपटने के लिए भारत सरकार को एक विस्तृत, दूरगामी एवं परिणामोन्मुख योजना बनानी होगी, क्योंकि यह संकट अभी जाने वाला नहीं है। वैज्ञानिकों का विचार है कि वैक्सीन आने के बाद भी यह बीमारी हमारे साथ रहेगी। इस संकट से निपटने के लिए हम “जान है तो जहां है“ से प्रारंभ करके “जान भी है और जहां भी है“ की नीति तक आ गए हैं। जहां तक संक्रमण का प्रश्न है इसका ग्राफ ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन उठा लिया जाए। परंतु लॉकडाउन के कारण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग हाशिए पर चले गए हैं, जिससे लाखों गरीब पीड़ित हो गए हैं और हजारों मध्यम वर्गीय परिवार कर्ज के दबाव में आ गए हैं। समस्या इतनी जटिल एवं व्यापक है कि विभिन्न क्षेत्रों को अलग-अलग रणनीति बनानी होगी। उन्होंने कतिपय सुझावों पर चर्चा भी की।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण
डाॅ. गुप्ता ने कहा आज भारत में ऐसी स्थिति बनी हुई है कि लोग मजबूर होकर शहरों से गांव लौट रहे हैं, जिनके पास न रोजगार होगा और न ही आजीविका के अन्य साधन। अतः एक बार हमें अपनी ’ग्रामीण व्यवस्था’ का विकास करना होगा, जिसे षड्यंत्रकारी तरीके से अंग्रेज काल में नष्ट कर दिया गया था। आज का भारत तेजी से विकसित होता हुआ एक लोकतांत्रिक देश है। अतः सरकार को “ग्रामीण अर्थ व्यवस्था“ को नई दिशा देनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज दिया गया तथा वित्त मंत्री ने अपनी घोषणा में लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योगों के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज का निर्धारण करते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया।

शैक्षिक जगत और अर्बन मनरेगा
कोविड-19 से शैक्षिक जगत भी बहुत प्रभावित हुआ है। स्कूल-कॉलेज बंद हैं। सभी प्रकार की परीक्षाएं स्थगित हैं। युवा निराश है। अतः सरकार को इस दिशा में सोचना पड़ेगा। परीक्षा और शिक्षण के तरीके में बदलाव लाकर उन्हें भविष्य के लिए आश्वासन देना पड़ेगा। इसके साथ-साथ सरकार को शहरी क्षेत्र के श्रमिकों और मध्यम वर्ग के लिए भी कोई ठोस योजना की घोषणा करनी चाहिए। संभव हो तो शहरी श्रमिकों के लिए अर्बन मनरेगा जैसी किसी योजना की शुरुआत करनी चाहिए। नौकरी पेशा मध्यम वर्ग के भत्तों में कटौती न करने पर भी विचार करना चाहिए।

वैकल्पिक स्वास्थ्य सुविधाओं को जुटाना
प्रथम लॉकडाउन (24 मार्च 2020) के समय संक्रमितों की संख्या 536 थी, परंतु आज संक्रमितों की संख्या एक लाख पार कर गई है। जब तक वैक्सीन या कोई कारगर इलाज नहीं आ जाता इसे रोकना संभव नहीं है। अतः लॉकडाउन पीरियड का उपयोग वैकल्पिक स्वास्थ्य संसाधनों को जुटाने में किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य की परिस्थितियों से निपट सकें।

सभी लोगों का साथ लेना
कोरोना संकट के विरुद्ध यह लड़ाई मानव जाति और प्राण घातक विषाणु का संघर्ष है। जिसमें समाज के सभी व्यक्तियों संस्थाओं एवं स्वयंसेवी संगठन को आगे आना होगा। इसके लिए सरकार को चाहिए कि आईसीएमआर के बाहर काम कर रहे स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अलावा अर्थशास्त्रियों, समाज वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों से परामर्श करके रणनीति बनानी चाहिए।

जीवन के मापदंडों को बदलना
आज ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, हमें अपने जीवन के मापदंडों को बदलना होगा। बाध्यकारी रूप से व्यक्ति एवं समाज दोनों को “पैराडिज्म शिफ्ट“ में जाना चाहिए। जिसका मूल मंत्र “केयर फॉर अदर्स“ यानी पड़ोसी सुरक्षित है तो हम भी सुरक्षित हैं। अपने स्तर पर जो बन सके उसको समाज के लिए करना चाहिए।

केंद्र एवं राज्यों में सहयोग
कोविड 19 संकट में सरकारों की भूमिका केंद्रीय हो गई है। भारत में संघात्मक व्यवस्था है। अतः केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और सामंजस्य होना चाहिए। केंद्र सरकार को राज्यों को उनका हिस्सा और अंशदान उदारता से देना चाहिए और राज्य का कर्तव्य है कि केंद्र की योजनाओं को ईमानदारी से लागू करें। इस संकट में हम योजनाओं का विकेंद्रीकरण करके ज्यादा सक्षम तरीके से निपट सकते हैं।

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