कविता : मैं हिन्दू हु

ना मैं ब्राह्मण ना मैं बनिया
ना ठाकुर ना ठकराल हु,
पूरे विश्व मे सब से ऊपर
मैं विश्व गुरु हृदय से बहुत विशाल हु ,मैं धर्म सनातन का प्रहरी मैं हिन्दू हु मैं हिन्दू हु,,,,,2
ना मैं यादव ना मैं कोइरी
ना सिंह ना राय हु, सदा सभी के संघ में मैं रहता
 सब का साथ निभाता हु,
मानवता की अलख जलाकर सब को मैं अपनाता हु, धर्म सनातन
में जन्म लिया मैं हा मैं हिन्दू हु मैं हिन्दू हु,,,,,,2
ना मैं वैश्य ना मैं छत्रिय
ना दलित ना पाशी हु , माँ भारती का धरती पुत्र हु मैं हिन्द का वाशी हु, धर्म सनातन के धर्म  ध्वजा को सदा दिल से लहराता हु,मैं राम नाम गुण गाता हु,हा मैं हिन्दू हु हा मैं हिन्दू हु,,,,2
हिन्द के रज रज और कड़ कड़ में हमारी जान बसी है,
सदा हिन्द पर जान लुटाते
ये हिन्द हमारी जननी हैं,
लाखो लाख युगों से हम इसी धरा के वाशी हैं, यहाँ अयोध्या यहाँ हैं मथुरा और यहाँ पर काशी हैं, सब से बड़ा सत्य यही है हम धर्म सनातन के रच्छक हम सब इसी हिन्द के वाशी हैं हा हम हिन्दू हैं हा हम हिन्दू हैं,,,,,2
ना कभी कीसी का अनहित करते ना करे किसी की बुराई ,सदा सभी का अच्छा करते ,जग की सोचे भलाई  ,हम मृदुल भाषी बड़े हृदय के हम सब को हँसकर अपनाते है, हम  धर्म सनातन को दिल मे रखते हम हिन्दू कहलाते है
हा मैं हिन्दू हु हा मैं हिन्दू हु,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी ( रसिंक बनारसी )

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