क्या कमाया क्या बनाया
क्या किया मैंने जग में काम,
शौहरत दौलत नाम दाम सब
कुछ यही छोड़ जाऊंगा कुछ भी ना लेकर जाऊंगा, एक दिन मैं
चला जाऊँगा,,,,,,,2
जब तक सांसे चल रही हैं
मेरी तब तक सारा मेला हैं ,
ममता चिन्ता और चतुराई
ये सब माया का झमेला हैं,
सारी बाते यही छोड़ कर
झट से मैं चला जाऊंगा,,,,,2
कब कहा औऱ किस हालत में
मेरे सफर की होगी सुरुवात,
इस बारे में मैं कुछ ना जानू ना
ईस विषय मे करू कभी कोई बात,
पर सब से बड़ा कटु सत्य यही हैं
सब कुछ छोडक़र मैं एक दिन चला जाऊँगा,,,,,,2
बेटा बेटी अपने पराये कोई साथ
ना जाएगा , कोई घर आँगन में बैठ के रोये कोई दरवाजे तक आएगा , कोई गल्ली चौक चौराहे तक कोई गाँव की शरहद तक आएगा, कोई मुझे श्मशान तक
पहुंचाएगा ,हर कोई अपना फर्ज
निभाएगा ,पर यह तय है एक दिन
मैं चला जाऊँगा,,,,,,2
अंतिम क्रिया कर के मेरी कोई मेरा अपना अपने फर्ज
निभाएगा , फिर आटघाट पर पिंड
दान कर ब्रह्मभोज कराएगा , लोकाटण्डन कर के वो अपना
फर्ज निभायेगा , पर सब से अडिग सत्य यही हैं एक दिन
मैं चला जाऊँगा,,,,,,2
फिर मुझे भुलाकर वो अपनी जीवन शैली में लग जाएगा सारी बात का सार यही हैं, एक दिन मैं चला जाऊंगा
ना किसी से कुछ कह पाऊंगा ना
किसी की कुछ सुन पाऊंगा , झट पट चट पट ना जाने कब मैं यहाँ
से चला जाऊंगा,एक दिन मैं चला
जाऊँगा,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिंक तिवारी )