प्रयागराज की प्रतिष्ठित कवयित्री, लेखिका, शिक्षिका डॉ० पूर्णिमा मालवीय का आज (२१ अप्रैल) निधन हो गया था। ६१ वर्षीया डॉ० पूर्णिमा मालवीय अपने मालवीय नगर मे निवास करती थीँ। वे अपने पीछे कच्ची गृहस्थी, अध्ययनरत दो बेटोँ को छोड़कर ईश्वर के अंश मे विलीन हो चुकी हैँ।
यह जानकारी उनके सारस्वत मित्र आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने दी है। प्राप्त सूचना के अनुसार, पूर्णिमा मालवीय २१ अप्रैल को करछना-स्थित जे० पी० एस० महाविद्यालय, घूरपुर, गौहनियाँ मे प्राचार्य-पद का दायित्व-निर्वहण करते समय दिन मे लगभग दो बजे अकस्मात् गिर पड़ीँ और उन्हेँ मस्तिष्क-आघात पहुँचा; उस समय महाविद्यालय मे परीक्षा हो रही थी। उन्हेँ महाविद्यालय-परिवार की ओर से तत्काल जीवन ज्योति अस्पताल, रामबाग़, प्रयागराज ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकोँ ने उन्हेँ मृत घोषित कर दिया, तत्पश्चात् उनका शव उनके स्वजन-परिजन-द्वारा घर ले आया गया।
ज्ञातव्य है कि कवयित्री, शिक्षिका और लेखिका डॉ० पूर्णिमा मालवीय की शिक्षा-दीक्षा इलाहाबाद मे ही हुई थी। उन्होँने गौरी पाठशाला इण्टर कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी आरम्भिक और उच्च शिक्षा उत्तम अंकोँ के साथ अर्जित की थीँ। वे सी० एम० पी० डिग्री कॉलेज, प्रयागराज मे अध्यापन भी कर चुकी थीँ।
आज ‘सर्जनपीठ’ की ओर से आयोजित एक शोकसभा मे पूर्णिमा मालवीय के घनिष्ठ सारस्वत मित्र आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, “पूर्णिमा मेरी अन्तरंग मित्र थी। वह मुझे समझाती रहती थी कि लोग को जैसा मन आये, करने दीजिए; आप उन्हेँ सुधार नहीँ सकते; क्योँकि उनका अपना संस्कार है। आप चुपचाप अपना कर्त्तव्य-निर्वहण करते रहिए।” पूर्णिमा हिन्दीभाषा के प्रचार-प्रसार के प्रति चिन्तित भी रहती थी। वह सामान्य जीवन जीनेवाली एक कुशल चिन्तक-विचारक और भाव-संवेदनापूर्ण कवयित्री थी। वह अवकाश निकालकर प्राय: हमारे हर आयोजन मे सक्रिय सहभागिता करती थी। मुझसे कहती रहती थी, “आप सबको सुधारने की कोशिश मत कीजिए; यहाँ सब एक से बढ़कर हैँ। हमे चुपचाप अपना काम करना है।” पूर्णिमा का अकस्मात चले जाना, मेरी व्यक्तिगत क्षति भी है। वास्तव मे वह शुभचिन्तक थी।”
भारती भवन पुस्तकालय, मालवीयनगर, प्रयागराज के पुस्कालयाध्यक्ष स्वतन्त्रकुमार पाण्डेय ने कहा, “पूर्णिमा जी हमारे पुस्तकालय मे अक्सर आती थीँ। उनके अन्दर सेवाभाव कूट-कूटकर भरा हुआ था।”
अरविन्द मालवीय ने बताया, “पूर्णिमा जी मेरी मौसी की बेटी थीँ। वे साहित्य-सम्पन्न थीँ। वे स्वयं को हर परिस्थिति मे ढाल लेना जानती थीँ। वे अत्यन्त व्यवहार-कुशल थीँ।”
कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने बताया, “प्रयागराज की एक कवि गोष्ठी मे मेरी मुलाक़ात डॉ० पूर्णिमा मालवीय से हुई, तबसे मै उनके मुखर व्यक्तित्व की मुरीद हो गयी। विवाह के १०-११ वर्ष बाद ही पति का देहावसान हो गया था। दो बच्चों के साथ कठिन जीवन यापन करते हुए भी कभी पूर्णिमा जी के चेहरे पर मायूसी नज़र नहीँ आयी। विगत दो वर्ष से हमारी मुलाकात नहीं हुई; लेकिन उनके महाविद्यालय मे हमारी आखिरी मुलाकात उनके ज़िन्दादिल व्यक्तित्व के रूप मे हमेशा याद रहेगी।”
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया कि मित्र पूर्णिमा की शवयात्रा कल (२२ अप्रैल) उनके मालवीयनगर-स्थित निवास-स्थान से निकटतम श्मशानघाट के लिए प्रस्थान करेगी।
कवयित्री और शिक्षिका डॉ० पूर्णिमा मालवीय अब नहीँ रहीँ!
