लेखापरीक्षा पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन
प्रयागराज ।
उत्तर प्रदेश सरकार के संदर्भ में उच्च शिक्षा के परिणामों की निष्पादन लेखापरीक्षा पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन दिनांक 22.02.2013 को राज्य विधानमण्डल के समक्ष रखा गया। प्रतिवेदन के महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नवत हैं.
उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में मार्च 2020 में राज्य में 18 राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय थे। राज्य में 170 शासकीय महाविद्यालय, 331 अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालय एवं 6,682 स्ववित्त पोषित निजी महाविद्यालय इन विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध थे। वर्ष 2019-20 के दौरान 90.61 लाख विद्यार्थी इन महाविद्यालयों में नामांकित थे। वर्ष 2019-20 में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 0.16 प्रतिशत उच्च शिक्षा पर व्यय किया गया।
उच्च शिक्षा के परिणामों की निष्पादन लेखापरीक्षा में वर्ष 2014-20 की अवधि को सम्मिलित किया गया है। दो विश्वविद्यालय – महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के साथ इन विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध 10 महाविद्यालय विस्तृत लेखापरीक्षा हेतु चयनित किये गये थे।
राज्य में उच्च शिक्षा की पहुँच तथा समता के साथ उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का आंकलन किया गया था। अभिशासन तथा प्रबंधन के विषय जो कि सुधार हेतु इन सभी कारकों में महत्वपूर्ण हैं को भी
आंकलित किया गया था। यह प्रतिवेदन ऐसे क्षेत्रों जिनमें प्रणालीगत संशोधनों तथा सुधार की
आवश्यकता है, की पहचान करने का उद्देश्य रखता है
वर्ष 2019-20 की अवधि में राज्य का सकल नामांकन अनुपात अखिल भारतीय औसत (27.10 प्रतिशत) के सापेक्ष कम (25.30 प्रतिशत) था। कोई भी राज्य विश्वविद्यालय / महाविद्यालय भारत के 100 सर्वोच्च उच्च शिक्षण संस्थानों में सम्मिलित नहीं था। वर्ष 2018-19 में राज्य के मात्र 8.47 प्रतिशत (498 उच्च शिक्षण संस्थान) राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) ग्रेडिंग से श्रेणीबद्ध थे जो 2019-20 में और भी घटकर 2.60 प्रतिशत (183 उच्च शिक्षण संस्थान) रह गये। इनमें से केवल 29 उच्च शिक्षण संस्थानों (0.40 प्रतिशत) को ‘ए’ ग्रेडिंग से मान्यता प्राप्त थी।
उच्च शिक्षा विभाग के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन, राज्य विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों, शासकीय महाविद्यालयों एवं अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों की संख्या वर्ष 2016-17 से स्थिर थी। तदापि, स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों की संख्या वर्ष 2016-17 में 5.377 से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 6,682 हो गयी थी। पांच जनपदों में कोई भी शासकीय महाविद्यालय नहीं था एवं दूसरे पांच जनपदों में पुरुष या सह-शिक्षा के शासकीय महाविद्यालय नहीं थे। अग्रेत्तर 20 जनपदों में कोई भी शासकीय या अशासकीय सहायता प्राप्त बालिका महाविद्यालय नहीं थे। नामांकन स्तर वर्ष 2015-16 में 94.88 लाख से वर्ष 2019-20 में 90.61 लाख की सतत गिरावट प्रदर्शित कर रहा था। प्रति महाविद्यालय औसत नामांकन घटकर 2015-16 में 1,830 विद्यार्थियों से 2019-20 में 1,261 विद्यार्थी रह गया था।
विश्वविद्यालय / महाविद्यालय खोलने की कोई स्पष्ट नीति राज्य के पास नहीं थी। तदापि निजी प्रबंधनतंत्र द्वारा असेवित क्षेत्रों में ऐसे विकास खण्डों जिनमें एक भी महाविद्यालय नहीं थे को प्राथमिकता देने के मानदण्ड के साथ नये महाविद्यालयों को खोलने की एक योजना क्रियान्वित की जा रही थी। वर्ष 2014-17 के दौरान 90 ऐसे महाविद्यालयों के अनुमोदन के विपरीत मार्च 2020 तक केवल 12 के द्वारा अध्ययन के विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्बद्धता प्राप्त की गयी थी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालय द्वारा कॉलेजों की सम्बद्धता) विनियम 2009 में विशिष्ट प्राविधान के बावजूद, नमूना जांच विश्वविद्यालयों (महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी एवं लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ) द्वारा उनसे सम्बद्ध निजी महाविद्यालयों के शुल्क संरचना का अनुमोदन नहीं किया गया था। नमूना जाँच की गयी संस्थाओं की लेखापरीक्षा में देखा गया कि नियमित एवं स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों के वर्ष 2014-20 के दौरान छात्रों से लिये गये शुल्क में भारी मात्रा में अंतर था। राज्य सरकार द्वारा कार्यकारी आदेश से निर्धारित शिक्षण शुल्क का अनुपालन नमूना जाँच की गयी बहुत सी उच्च शिक्षण संस्थाओं द्वारा नहीं किया गया था।
लेखापरीक्षा में देखा गया कि वर्ष 2017-20 के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 73 से 80 प्रतिशत एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के 56 से 67 प्रतिशत विद्यार्थी समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रदत्त दशमोत्तर छात्रवृत्ति से लाभान्वित हुये थे।
वर्ष 2019-20 के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं लखनऊ विश्वविद्यालय में क्रमशः केवल 29 प्रतिशत एवं 17 प्रतिशत कक्षायें सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) सक्षम थी। तदापि विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय छात्रों को ई-संसाधन तक पहुँच उपलब्ध कर रहे थे।
नई शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के दौरान शासन द्वारा पाठ्यक्रम का डिजाइन एवं विषय पर पर्याप्त कार्य किया गया तथा शैक्षणिक सत्र 2021-22 से चयन आधारित क्रेडिट प्रणाली लागू की गयी है। वर्ष 2014-20 के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं लखनऊ विश्वविद्यालय में रोजगारपरकता पर केन्द्रित कार्यक्रमों का औसत प्रतिशत क्रमशः 21 प्रतिशत एवं 10 प्रतिशत था।
निर्धारित छात्र शिक्षक अनुपात 20:1 के विपरीत शासकीय महाविद्यालयों में वर्ष 2019-20 के दौरान 49:1 था। वर्ष 2014-20 के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में औसतन 19 प्रतिशत तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में औसतन 16 प्रतिशत शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया गया।
वर्ष 2014-15 से 2019-20 (वर्ष 2018-19 को छोड़कर) तक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में विभिन्न पाठ्यक्रमों के परिणाम 273 दिनों तक विलम्बित थे। मांगे जाने के बाद भी वर्ष 2014-17 के दौरान परिणामों की घोषणा से सम्बन्धित सूचना लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा लेखापरीक्षा को उपलब्ध नहीं करवायी गयी। जैसा कि लेखापरीक्षा में विश्लेषित किया गया वर्ष 2017-20 के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय में परिणाम 175 दिनों तक विलम्बित थे।
वर्ष 2017-20 के दौरान, बहुत कम छात्रों (0.15 प्रतिशत) ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीत में पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया था, तदापि, औसतन 90 प्रतिशत छात्रों के अंकों में पुनर्मूल्यांकन से वृद्धि हुई अग्रेतर, वर्ष 2017-20 के दौरान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में सुधार परीक्षा में औसतन 77 प्रतिशत प्रपत्रों में अंकों में वृद्धि हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय में सुधार परीक्षा में सभी छात्रों (2.783) के अंकों में वृद्धि हुई।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं लखनऊ विश्वविद्यालय में अनुसंधान परियोजनायें 1.463 दिनों तक के विलम्ब से पूर्ण हुई। कुछ बिना किसी परियोजना परिणाम के अपरिपक्व बंद कर दी गयीं। नमूना जांच किये गये विश्वविद्यालयों में पेटेट प्रदान किया जाना तथा परामर्श देना शून्य था। वर्ष 2014-20 के दौरान विश्वविद्यालय अथवा महाविद्यालय से बाहर उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले
अथवा उसी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए प्रयत्न करने वाले छात्रों के आंकड़े अनुरक्षित नहीं थे।
सदस्यों के पदों के खाली रहने तथा आवश्यक बैठकों की कमी के कारण विश्वविद्यालयों में शासी निकाय प्रभावी रूप से क्रियाशील नहीं थे। आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) की स्थापना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में (अप्रैल 2010) तथा लखनऊ विश्वविद्यालय (दिसम्बर 2016) में हुई थी। तदापि महाविद्यालयों में आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन समिति के कार्यकलाप के अनुश्रवण हेतु राज्य स्तरीय गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ का गठन नहीं किया गया था तथा स्थापना हेतु निर्णय शासन स्तर पर विचाराधीन (जुलाई 2022 ) था |
मार्च 2020 तक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध क्रमशः 341 तथा 171 महाविद्यालय पूर्वी उत्तर प्रदेश के पांच जनपदों तथा लखनऊ जनपद में फैले हुए थे। नमूना जाँच किये गये महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 29 स्व- वित्त पोषित महाविद्यालयों में से 18 सम्बद्धता के चार से 29 प्रतिशत मानक भी पूर्ण नहीं करते थे। सम्बद्ध महाविद्यालयों का निरीक्षण नहीं किया गया था पर्याप्त अवसंरचना न रखने वाले महाविद्यालयों की अस्थाई सम्बद्धता को विस्तारित किया गया था। महाविद्यालयों को सम्बद्धता के मानक में छूट से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के विकास हेतु राज्य सरकार द्वारा केन्द्रांश को सम्मिलित करते हुए राज्यांश राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक को 1.636 दिनों के विलम्ब तक निर्गत किया गया था। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं लखनऊ विश्वविद्यालय उनके द्वारा अर्जित राजस्व से अपने व्यय को पूर्ण करने में आत्म निर्भर नहीं थे तथा शासकीय अनुदान पर निर्भर थे।
हमने नीचे दिए गए विवरण के अनुसार सरकार को 12 अनुशंसायें भी की हैं: अनुशंसा 1: उत्तर प्रदेश में वर्ष 2030 तक लक्षित सकल नामांकन अनुपात 40 प्रतिशत प्राप्त करने हेतु, राज्य सरकार द्वारा उन जनपदों में, जहां कमी है, अधिक महाविद्यालयों की स्थापना से उच्च शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना चाहिए।