देशों के साथ ‘डेट-ट्रैप डिप्लोमेसी’ का कार्ड खेल रहा है। इसके जरिए चीन पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर विदेशी देशों को कर्ज देता है। इसके बाद जब कर्ज लिए देश इसे चुकाने में सक्षम नहीं होते तो वह उनके संसाधनों पर कब्जा करना शुरू कर देता है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका है। श्रीलंका को कर्ज के बदले में अपना एक पोर्ट हंबनटोटा चीन को देना पड़ा। चीन की इस खतरनाक लोन डिप्लोमेसी ने कई देशों को अपने कर्ज के चंगुल में फंसा दिया है। चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। बता दें कि चीन की बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे महंगी परियोजना है। आइए जानते हैं कि क्या है चीन की लोन डिप्लोमेसी। इसके क्या होंगे दूरगामी परिणाम? आखिर चीन किस योजना पर कर रहा है काम? भारत किस तरह से हो रहा है प्रभावित?
विदेश मामलों के जानकार प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन ने बहुत चतुराई से कई मुल्कों को अपने इस जाल में फंसाया है। चीन ने इस प्रोजेक्ट की आड़ में करीब 385 बिलियन डालर तक का कर्ज कई गरीब देशों को दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की यह रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली थी। इससे चीन की रणनीति को आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि चीन इसके जरिए केवल श्रीलंका ही नहीं बल्कि कई गरीब मुल्कों को आर्थिक गुलामी की ओर ले जा रहा है। चीन की यह रणनीति उन मुल्कों की एकता और अखंडता के लिए बेहद खतरनाक है।
गोटभाया राजपक्षे के सत्ता में आते ही बदले समीकरण
प्रो. पंत ने कहा कि श्रीलंका ने बेहद ज्यादा ब्याज दर पर चीन से कर्ज लिया है और अब यह उसके लिए गले की फांस बन गया है। श्रीलंका को इस साल 1.5 से 2 अरब डालर चीन को लौटाना है। वह भी तब जब वह डालर के लिए तरस रहा है। इस बीच श्रीलंका के एक सांसद ने चीनी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर देश में आर्थिक हमले को बंद करने के लिए कहा है। बता दें कि श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने चीन के विदेश मंत्री के साथ ऋण संकट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि क्या बीजिंग अपने विदेशी ऋण को पुनर्गठित करके विदेशी मुद्रा संकट से उबरने में उनके देश की मदद कर सकता है।उन्होंने कहा कि कहा कि वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में गोटभाया राजपक्षे ने सत्ता संभाली तब से चीन के साथ संबंध कमतर हुए हैं। राजपक्षे को यह भय सता रहा था कि अगर वह चीन से कर्ज लेता रहा तो वह ड्रैगन का सैटेलाइट स्टेट बनकर रह जाएगा। प्रो. पंत ने कहा कि महिंदा राजपक्षे के शासन में चीन से निकटता बढ़ी थी। श्रीलंका ने विकास के नाम पर चीन से खूब कर्ज लिया, लेकिन जब उसे चुकाने की बारी आई तो श्रीलंका के पास कुछ भी नहीं बचा। इसके बाद हंबनटोटा पोर्ट और 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल जोन के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब आशंका जताई जा रही है कि हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए चीन इसे बतौर नेवल बेस भी प्रयोग कर सकता है।