सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सहारनपुर की पीएम की रैली को लेकर रालोद प्रमुख जयंत चौधरी पर तंज कसा है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि पश्चिमी यूपी में भाजपा की घोषित संयुक्त रैली में उनके साथ गए दल भी अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं। उपेक्षित होकर अपमान का घूंट पीकर रह जा रहे हैं। यहां तक कि अपने प्रत्याशी के समर्थन में की जा रही रैली तक में वो हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा का गठबंधन ‘गांठबंधन’ बन चुका है। वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सामाचार भर के लिए बचा है। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के आगे भाजपाइयों का गुट हथियार डाल चुका है।माफिया मुख्तार अंसारी को श्रद्धांजलि के बहाने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बड़ा सियासी दांव चला है। उन्होंने इस मामले में मुस्लिमों की आशंकाओं को हवा दी। वहीं, मुख्तार की मौत को अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से जोड़कर अपने वोट बैंक को संदेश भी दिया कि जरूरत के वक्त साथ खड़े होने से कभी पीछे नहीं हटेंगे। गाजीपुर में अंसारी परिवार से मिलने के बाद उन्होंने एक बार फिर प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच की मांग की।आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, बांदा जेल में बंद मुख्तार की मौत हार्ट अटैक से हुई। लेकिन, मुस्लिम होने के नाते मुख्तार से हमदर्दी रखने वाले इसे प्राकृतिक मौत नहीं मान रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इन भावनाओं की राजनीतिक अहमियत बखूबी समझ रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने गाजीपुर में काफी समय मुख्तार के परिवार के साथ बिताया। सोशल मीडिया के जरिये मुलाकात के दृश्यों को खुद सार्वजनिक भी किया।
अखिलेश ने मुख्तार की मौत की सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच की मांग करते हुए सवाल भी दागा कि क्या रूस में विपक्षी नेता (एलेक्सी नवलनी) को जेल में जहर देकर नहीं मारा गया। क्या कनाडा सरकार ने उसकी जमीन पर एक व्यक्ति को मरवाने का आरोप भारत पर नहीं लगाया है। मुख्तार अंसारी ने खुद कहा था कि उन्हें जहर दिया जा रहा है। इस सच्चाई को सामने लाने के लिए ही वे जज की निगरानी में जांच की बात कर रहे हैं।
अखिलेश इससे पहले कभी मुख्तार या उसके परिवार के लिए इतना खुलकर नहीं बोले, जितना कि रविवार को गाजीपुर में। हालांकि, एक वक्त वो भी था, जब मुख्यमंत्री रहते अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का विलय सपा में नहीं होने दिया था। तब उन्होंने कहा था कि माफिया के लिए सपा में कोई जगह नहीं है। इस मुद्दे पर उनका अपने चाचा शिवपाल यादव से ही विवाद हो गया था। अब अपने तब के बयानों से पलटते हुए कहा कि जेल में रहते हुए मुख्तार अंसारी चुनाव जीतते रहे तो इसका मतलब है कि जनता का दुख-दर्द बांटते थे। वरना, जनता उनके साथ न आती।
इसलिए राजनीति के जानकार अखिलेश के गाजीपुर में दिए बयानों को मुस्लिम वोट बैंक को साधने की उनकी कोशिश के रूप में देख रहे हैं। अखिलेश यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर यादवों के अलावा कोई दृढ़ता के साथ उनके साथ खड़ा रहा है तो वो मुस्लिम मतदाता ही है।
इसी कोशिश का नतीजा है कि अखिलेश ने यहां तक कहा कि मुख्तार प्रकरण में लोग जानते हैं कि सच्चाई क्या है। इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों के गुस्से का सियासी नफा-नुकसान अखिलेश अच्छी तरह से भांप रहे हैं। इसलिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल के हवाले से कहा कि यह लोकतंत्र बचाने का आखिरी चुनाव है। हमें सरकार और उसकी संस्थाओं पर भरोसा नहीं रह गया है।
… पर साधारण तरीके से लिया मुख्तार का नाम
अखिलेश ने मीडिया से बात करते वक्त मुख्तार अंसारी का नाम साधारण तरीके से ही लिया। उन्होंने कहा-“मुख्तार अंसारी ने खुद कहा था कि उसे जहर दिया जा रहा है। राजनीतिक के जानकार मानते हैं कि साधारण तरीके से नाम लेना सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। ताकि, जनता के किसी वर्ग में यह संदेश न जाए कि अखिलेश किसी माफिया का महिमा मंडन कर रहे हैं। हां, कानूनी दायरे में कार्रवाई की मांग दीगर है।