( मध्यमवर्गीय परिवारों की घटना से प्रेरीत हैं यह कविता )
कोई जुगाड़ से कोई व्यापार से
कोई कॉम धन्धा के पगार से
नीत हर कोई घर परीवार में सब
कुछ पूराकरता हैं,
फिर भी देखो बड़ा गजब हैं
उसके जीवन में यारो कुछ न कुछ तो घटी पड़ी है, जिसे भी देखो यहाँ पर यारो सभी की झोली
फ़टी पड़ी हैं,,,,,2
जिस घर मे भी जाकर देखो
हर घर की एक सी कहानी हैं,
कोई भी हो सभी के घर मे
कुछ न कुछ तो घटी पड़ी हैं,
जिसे भी देखो मध्यमवर्ग में
यहाँ सभी की झोली फ़टी पड़ी हैं,,,,,2
खिंचा तानी झगड़ जुबानी
छोटी बड़ी हर एक परेशानी
देखो यहाँ मध्यमवर्ग के हर घर
के दरवाजे पे मस्त मगन हो तन के खड़ी , यही वजह हैं जिससे
यहाँ पर सब की झोली फ़टी पड़ी हैं,,,,,2
किसी को ज्यादा किसी को
कम है लेकिन यहाँ सभी को
गम हैं,
सब को यहाँ यही लगता हैं
सब से ज्यादा दुःखी तो हम है,
यही मूल कारण हैं यारो जो यहाँ
सभी की झोली फ़टी पड़ी हैं,,,,,2
दिन हीन धनवान सभी की
यारो यही जुबानी हैं,
आज नही सदियोँ से चली
आरही यही कहानी हैं,
जिसे भी देखो हर कोई यही है
कहता मेरी सब से बड़ी परेशानी है इसीलिए तो मैं कहता हूं यहाँ पे यारो सभी की झोली फ़टी पड़ी हैं,,,,,2
लाख कमाए खूब खिलाये
मख्न मिश्री दूध पिलाये,
मावा मलाई रबड़ी खोवा
दीन रात सब जमकर खाएं
फिर भी देखो वो कहते है,
कुछ न कुछ तो घटी पड़ी हैं,
जिसे भी देखो आज धरा पर
सभी की झोली फ़टी पड़ी हैं,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )