हिन्दी कविता : सत्ता का नशा

सत्ता के नशे में मस्त हुवे मानो
मदमस्त ये हाथी हैं, इनको बड़ा गुमान खूद पर हैं, क्यो की इनके संघ इनके दो साथी हैं, ये त्रिशंकु सरकार हैं, पर अहंकार बेकार हैं,,,,,,,2
ये वक़्त के साथ मे आई हैं,
ये वक़्त के साथ मे जाएगी,
ये ना सदा किसी की हो पाई हैं,
ये ना सदा के लिए तुम्हे अपनाएगी, ये सत्ता हैं शातिरों की
ये साथ बदलते जाएगी,,,,,,2
इस सत्ता पर जिसने भी अभिमान किया, इस सत्ता ने उसका ही काम तमाम किया, ये आती हैं
ये जाती हैं, ये किसी एक की ना
हो पाती हैं, ये बड़ी चटकोर चटोरी  हैं, ये सब को अपना स्वाद
चखाती हैं, सब इसके चकर काट रहे पर ये सब को ललचाती हैं,,,2
जो सत्ता हाथ मे आये तो कुछ अच्छा यारो कर जाना , इतिहास
के सुन्दर पन्नो पर आप अपना नाम स्वर्ण अच्छरो में अमर कर जाना , ये देश तुम्हे सदा याद करे
कुछ ऐसे सुंदर काम तुम कर जाना,,,,2
एक बात अंत मे खास कहु,
मैं सदा जन जन के साथ रहू,
जब सत्ता में आना भइया,  तब काला इतिहास ना लिखवाना, ना बन्ना कभी हिटलर तुम , ना एमर्जनशी से हालात बनाना , जन सेवा जन हितों के खातिर करना सदा ही अच्छा काम तुम, यदि बुरा किये तो जल्द जावोगे,फिर जल्द ना सत्ता में आवोगे,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
                 (  रसिक तिवारी  )

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