हिन्दी कविता : बूढ़ी माँ

जिन बच्चों को कोख से जवानी तक पाला आज वो बेगाने हो गये,
दो बेटों में आज देखो माँ कैसे बट गई ,इस घर से उस घर दो वक्त की  रोटी के लिए  आते
जाते थक गई,,,,,2
एक रोज अचानक माँ न जाने
कहा खो गई, इस घर से उस घर
की दूरी बड़ी हो गई, या दो वक्त
की रोटी की मजबूरी बड़ी हो गई
जीवन के लम्बे सफर से ज्यादा
कठिन ये रोटी की डगर हो गई,
चलते चलते बूढ़ी माँ एक  दिन रास्ते मे ही अचानक मौत की नींद सो गई, राह चलती भीड़ वहाँ पर
जमा हो गई , यहाँ पर देखा था
वहाँ पर देखा था ना जाने क्या क्या बातें सुरु हो गई,
दो बच्चों की माँ आज अनाथ की मौत सो गई , बीच सड़क पर वो
बेगानी सी अनाथ हो गई, सुहाग
के साथ ही अगर सांसे चली जाती
तो आज उस विधवा माँ को ऐसी अनाथो की मौत नही आती,
 इस बेदर्दी जमाने ने मुझको भी हिला दिया आज मेरी लेखनी ने मुझको
भी रुला दिया,,,,माता पिता का सदा सम्मान करें दोस्तो धरा पर जीवन भहगवां हैं नमन है
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
            ( रसिक बनारसी )

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