हिन्दी कविता : टूटी हुई लालटेन

एक वक्त था जब इस टूटी  हुई लालटेन
की बहुत निराली शान थी,
हर घर आँगन में  यारो इसकी
बड़ी पहचान थी,,,,,2
शाम ढलते ही बड़े शान से
साफ कर के लोग इसे जला
लेते थे,घर आँगन दुकान मकान
हर जगह सजा लेते थे,इसकी
शानदार रौशनी से अँधेरे को
भगा देते थे,,,,2
इसकी बड़ी कीमत थी यारो जब ये
नया नवेला और जवान था, हर अँधेरे घर
आँगन मकान दुकान में इसका ही डिमांड था,हर कोई
बड़े प्यार से इसे निहारता था,क्या
प्यारी लालटेन हैं, क्या खूब रौशनी है, यही कह कर हर कोई
पुकारता था,,,,,,2
पर वक़्त के संघ में वक़्त जो बिता , इन्सान बदल गया मतलब
खत्म होते ही तन्हा इसे छोड़ कर
आगे निकल गया, आज ये अपनी
ही कहानी पर रोता। हैं याद कर के
दिन जवानी के अपनी  जिन्दगानी
पर रोता हैं,,,,,,,2
इस टूटी हुई लालटेन ने
बहुत कुछ सीखा दिया सच
कहु तो यारो हमको रुला दिया
जीवन की सच्चाई का दर्शन
करा दिया,,,,,2
टूटी हुई लालटेन ने बहुत कुछ
बता दिया, एक वक्त था जब
ये अपनी रौशनी से किसी को
वकील,किसी को सीए, किसी को
प्रधान बना दिया, पर आज वक़्त
जो निकल गया तो सभी ने इसे भुला दिया,टूटी हुई लालटेन ने सच मे रुला दिया, ,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
              (   रसिक बनारसी )

Related posts

Leave a Comment