डॉ कुसुम पाण्डेय
कोरोना,कोरोना, कोरोना यही करते-करते सातवां महीना भी शुरू हो गया है। मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लॉकडाउन में तो अधिकतर लोग घरों में रहे सिर्फ जरूरी सेवा वाले जैसे सरकारी डॉक्टर, स्वास्थ्य विभाग, पुलिसकर्मी, सफाई वाले और भी कुछ जरूरी सेवाओं वाले ही बाहर निकले और अपनी सेवाएं दी।
लेकिन धीरे-धीरे अनलॉक शुरू हो गया और डॉक्टरों तथा स्वास्थ्य विभाग का काम लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कई महीनों से अपनी जान जोखिम में डालकर जिस तरह से सरकारी डॉक्टरों व स्वास्थ्य विभाग ने काम किया है वह वास्तव में बहुत सराहनीय है।
धरती के भगवान, कोरोना योद्धा आदि नामों से विभूषित भी किया गया लेकिन क्या ये वास्तव में जिस सम्मान के अधिकारी हैं वह उन्हें मिल पा रहा है???
अरे सम्मान कौन कहे यहां तो उत्साहवर्धक शब्दों का भी अभाव दिखाई पड़ रहा है। कोई कहेगा सरकारी डॉक्टर पैसा कमा रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं, जबरदस्ती कोरोना पॉजिटिव बता रहे हैं और भी बहुत सारी गलत बातें।
मैं स्वयं ऐसे मरीजों को जानती हूं जो सरकारी अस्पताल से भागकर प्राइवेट में गए और फिर वहां का बिल देखकर वापस सरकारी अस्पताल और डॉक्टरों की शरण में आए।
आपदा को अवसर बनाने में निजी डॉक्टरों की मिसाल दी जा सकती है। इलाज के नाम पर 2 गुना दाम लेना और अपने को सुरक्षित रखते हुए सिर्फ धन कमाना। और वही सरकारी डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग नित नए आरोपों को झेल रहा है और फिर भी मनोबल के साथ ईमानदारी से सिर्फ अपना काम करने में लगा है।
अभी कुछ दिन पहले की घटना है कि रायबरेली के सीएमओ को वहां के डीएम ने अपशब्दों से बेइज्जत किया। अब डीएम साहब को कौन समझाए कि सिविल सर्वेंट विशेषज्ञ नहीं होता है, अगर उसमें इतनी काबिलियत है तो किसी मरीज का इलाज कर उसे ठीक करके दिखाएं।
सिर्फ एसी रूम में बैठकर नीतियां बनाना और उनको जमीनी स्तर पर कार्यान्वित करने में बहुत बड़ा अंतर होता है।
लेकिन यह यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि 74 साल की आजादी के बाद भी हम मानसिक गुलामी में जकड़े हुए हैं।
क्या एक दर्जी का काम एक खाना बनाने वाला कर सकता है?? या शिक्षक का काम किसान?? ऐसे बहुत से उदाहरण है लेकिन सबके काम की उतनी ही महत्ता है। कहा भी गया है कि “जहां काम आवे सुई का करे तलवार”
मुझे लगता है कि आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे सिर्फ समझना उनको है जो नित्य नए नियम कानून बनाकर डॉक्टरों का मजाक बना रहे हैं, क्योंकि पेन चलाने और मरीज का इलाज करने में बहुत अंतर होता है। कमियां निकालना सबसे आसान काम होता है उन कमियों में रहकर काम करना सबसे कठिन।
जो लोग भी अपने ही डॉक्टरों व स्वास्थ्य विभाग की रोज कमियां गिना रहे हैं, वह क्या धृतराष्ट्र का काम नहीं कर रहे हैं???? नहीं यह अनैतिक व्यवहार है। समाज का हर वर्ग कृपया अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें।
कोरोनावायरस के साथ जीवन जीना है तो सुरक्षा नियमों का भी पालन करना सीखें। मास्क से मुंह और नाक ढकना है तो उसे गले पर लटका कर घूम रहे हैं। दूरी बनाकर रहना है तो गले मिलने को बेताब हैं। सारी यारी दोस्ती अभी निभा लेनी है और अपनी गलतियों का दोषारोपण सरकारी स्वास्थ्य विभाग पर डालकर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना है।
अरे भाई थोड़ा शिक्षित हो जाइए और अपने व्यवहार से किसी को सम्मानित ना कर सकते हो तो कोई बात नहीं कम से कम अपमानित करने का पाप तो नहीं करिए।